चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम!

चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम!

You are currently viewing चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम!

चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम!

चतुर्युग अनुसार भिन्न-भिन्न (वेद) व्यासों के नाम! : श्री मैत्रय जी बोले – हे भगवन ! आपके कथन से मैं यह जान गया कि किस प्रकार यह संपूर्ण जगत विष्णु रूप है विष्णु में स्थित है विष्णु से ही उत्पन्न हुआ है और विष्णु से अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।

अब मैं यह सुनना चाहता हूं कि भगवान ने वेदव्यास रूप से किस-किस वेदों का विभाग किया। जिस जिस युग में जो जो वेदव्यास हुए उनका तथा वेदों के संपूर्ण शाखा-भेदों का आप मुझसे वर्णन कीजिए। ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में क्या अंतर होता है ?

श्री पराशर जी बोले – हे मैत्रय ! वेद रूप वृक्ष के सहस्त्रों शाखा-भेद है, उनका विस्तार से वर्णन करने में तो कोई भी समर्थ नहीं है, अतः संक्षेप में सुनो। हे महामुने ! प्रत्येक द्वापर युग में भगवान विष्णु व्यास रूप से अवतीर्ण होते हैं और संसार के कल्याण के लिए एक वेद के अनेक भेद कर देते हैं। मनुष्यों के बल, वीर्य और तेज को अल्प जानकर वे समस्त प्राणियों के हित के लिए वेदों का विभाग करते हैं। मोहन से क्यूँ दिल लगाया हिंदी भजन लिरिक्स

जिस शरीर के द्वारा वे प्रभु एक वेद के अनेक विभाग करते हैं भगवान मधुसूदन की उस मूर्ति का नाम वेदव्यास है। हे महामुने ! जिस जिस मन्वंतर में जो जो व्यास होते हैं और वे जिस जिस प्रकार शाखाओं का विभाग करते हैं – वह मुझसे सुनो।

इस वैवस्वत मन्वंतर के प्रत्येक द्वापर युग में व्यास महर्षियों ने अब तक पुनः पुनः अट्ठाईस बार वेदों के विभाग किए हैं। हे साधु श्रेष्ठ ! जिन्होंने पुनः पुनः द्वापर युग में वेदो के चार-चार विभाग किए हैं उन अट्ठाईस व्यासों का वर्णन सुनो।

पहले द्वापर में स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने वेदों का विभाग किया था। दूसरे द्वापर के वेदव्यास प्रजापति हुए। तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य जी और चौथे में बृहस्पति जी व्यास हुए तथा पांचवे में सूर्य और छठे में भगवान मृत्यु व्यास कहलाए। सातवें द्वापर के वेदव्यास इंद्र, आठवें के वशिष्ठ, नवे के सारस्वत और दसवें के त्रिधामा कहे जाते हैं। ग्यारहवें में त्रिशिख, बारहवें में भरद्वाज, तेरहवें में अंतरिक्ष और चौदहवें में वर्णी नामक व्यास हुए।

चतुर्युगानुसार व्यासों के नाम :

ब्रह्मावेदव्यासशुक्राचार्यबृहस्पतिसूर्यमृत्युइंद्र
वशिष्ठसारस्वतत्रिधामात्रिशिखभरद्वाजअंतरिक्षवर्णी
त्रययारूणधनंजयऋतुंजय जयभरद्वाजगौतम हर्यत्मा
वाजश्रवातृणबिंदुऋक्ष (बाल्मीकि)शक्तिपराशर जातुकर्णकृष्णद्वैपायन

पन्द्रहवें में त्रययारूण, सोलहवें में धनंजय, सत्रहवें में ऋतुंजय और तदन्तर अठारहवें में जय नामक व्यास हुए। फिर उन्नीसवें में व्यास भरद्वाज हुए, भरद्वाज के पीछे गौतम हुए, और गौतम के पीछे जो व्यास हुए वे हर्यत्मा कहे जाते हैं। हर्यत्मा के अनंतर वाजश्रवा मुनि व्यास हुए तथा उनके पश्चात सोमशुष्मवंसी तृणबिंदु तेइसवें वेदव्यास कहलाए।

उनके पीछे भृगुवंशी ऋक्ष व्यास हुए जो बाल्मीकि कहलाए। तदनंतर हमारे पिता शक्ति हुए और फिर मैं (श्री पराशर जी) हुआ। मेरे अनंतर जातुकर्ण व्यास हुए और फिर कृष्णद्वैपायन – इस प्रकार ये अट्ठाईस व्यास प्राचीन है। इन्होंने द्वापरादि युगों में एक ही वेद के चार-चार विभाग किए है। हे महामुने ! मेरे पुत्र कृष्णद्वैपायन के अनंतर आगामी द्वापर युग में द्रोण-पुत्र अश्वत्थामा वेदव्यास होंगे।

राम जी की निकली सवारी हिंदी भजन लिरिक्स

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी