हमारे शब्द, कार्य, भावनायें, गतिविधियाँ ही कर्म है।

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हमारे शब्द, कार्य, भावनायें, गतिविधियाँ ही कर्म है।

हमारे शब्द, कार्य, भावनायें, गतिविधियाँ ही कर्म है। : एक राजा हाथी पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था। अचानक वह एक दुकान के सामने रुका और अपने मंत्री से कहा मुझे नहीं पता क्यों पर मैं इस दुकान के स्वामी को फाँसी देना चाहता हूं। यह सुनकर मंत्री को बहुत दु:ख हुआ, लेकिन जब तक वह राजा से कोई कारण पूछता तब तक राजा आगे की ओर बढ़ गया।

अगले दिन मंत्री उस दुकानदार से मिलने के लिए एक साधारण नागरिक के वेष में उसकी दुकान पर जा पहुँचा। उसने दुकानदार से ऐसे ही पूछ लिया कि उसका व्यापार कैसा चल रहा है? दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचता था। उसने बहुत दुखी होकर बताया कि मुश्किल से ही उसे कोई ग्राहक मिलता है। Please Read Also-रिश्तो को भी परखें,जो सम्बन्धी प्रेम का दिखावा करते हैं

लोग उसकी दुकान पर आते हैं। चंदन को सूँघते हैं, और चले जाते हैं। वे चंदन कि गुणवत्ता की प्रशंसा भी करते हैं। पर ख़रीदते कुछ नहीं। अब उसकी आशा केवल इस बात पर टिकी है, कि राजा जल्दी ही मर जाए। उसकी अन्त्येष्टि के लिए बड़ी मात्रा में चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी। वह आस-पास अकेला चंदन की लकड़ी का दुकानदार था। इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि राजा के मरने पर उसके दिन जरूर बदलेंगे।

अब मंत्री की समझ में आ गया ! कि राजा उसकी दुकान के सामने क्यों रुका था और क्यों दुकानदार को मार डालने की इच्छा व्यक्त की थी। शायद दुकानदार के नकारात्मक विचारों की तरंगों ने राजा पर वैसा प्रभाव डाला था । जिसने उसके बदले में दुकानदार के प्रति अपने अन्दर उसी तरह के नकारात्मक विचारों का अनुभव किया था। Please Read Also-जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन ऐसा कहा जाता है

बुद्धिमान मंत्री ने इस विषय पर कुछ क्षण तक विचार किया। फिर उसने अपनी पहचान और पिछले दिन की घटना बताये बिना कुछ चन्दन की लकड़ी ख़रीदने की इच्छा व्यक्त की। दुकानदार बहुत खुश हुआ। उसने चंदन को अच्छी तरह कागज में लपेटकर मंत्री को दे दिया।

जब मंत्री महल में लौटा तो वह सीधा दरबार में गया जहां राजा बैठा हुआ था। और सूचना दी कि चंदन की लकड़ी के दुकानदार ने उसे एक भेंट भेजी है। राजा को आश्चर्य हुआ। जब उसने बंडल को खोला तो उसमें सुनहरे रंग के श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी और उसकी सुगंध को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

राजा ने प्रसन्न होकर उसने चंदन के व्यापारी के लिए कुछ सोने के सिक्के भिजवा दिये। राजा को यह सोचकर अपने हृदय में बहुत खेद हुआ कि उसे दुकानदार को मारने का अवांछित विचार आया था। जब दुकानदार को राजा से सोने के सिक्के प्राप्त हुए, तो वह भी आश्चर्यचकित हो गया। वह राजा के गुण गाने लगा जिसने सोने के सिक्के भेजकर उसे ग़रीबी के अभिशाप से बचा लिया था।

कुछ समय बाद उसे अपने उन कलुषित विचारों की याद आयी जो वह राजा के प्रति सोचा करता था। उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसे नकारात्मक विचार करने पर बहुत पश्चात्ताप हुआ।

यदि हम किसी व्यक्ति के प्रति अच्छे और दयालु विचार रखेंगे। तो वे सकारात्मक विचार हमारे पास अनुकूल रूप में ही लौटेंगे। लेकिन यदि हम बुरे विचारों को पालेंगे। तो वे विचार हमारे पास उसी प्रकार बुरे विचारों के रूप में लौटेंगे।


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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी