लड्डू गोपाल जी ने निभाया भाई बन कर अपना फर्ज

लड्डू गोपाल जी ने निभाया भाई बन कर अपना फर्ज

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लड्डू गोपाल जी ने निभाया भाई बन कर अपना फर्ज

लड्डू गोपाल जी ने निभाया भाई बन कर अपना फर्ज

ब्रज मंडल क्षेत्र में एक जंगल के पास एक गांव बसा था I जंगल के किनारे ही एक टूटी फूटी झोपड़ी में एक 7 वर्षीय बालिका अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहा करती थी I जिसका नाम उसकी दादी ने बड़े प्रेम से चंदा रखा था चंदा का उसकी दादी के अतिरिक्त और कोई सहारा नहीं था I

उसके पिता की मृत्यु एक महामारी में उस समय हो गई थी जब चंदा की आयु मात्र 2 वर्ष की थी I तब से उसकी दादी ने ही उसका पालन- पोषण किया था I

उस बूढ़ी स्त्री के पास भी कमाई का कोई साधन नहीं था I इसलिए वह जंगल जाती और लकड़िया बीन कर उनको बेचती और उससे जो भी आमंदनी होती उससे ही उनका गुजारा चलता था I

क्योंकि घर में और कोई नही था I इसलिए दादी चंदा को भी अपने साथ जंगल ले जाती थी I दोनों दादी पोती दिनभर जंगल में भटकते और संध्या होने से पहले घर वापस लौट आते I यही उनका प्रतिदिन का नियम था I

चंदा अपनी दादी के साथ बहुत प्रसन्न रहती थी I किंतु उसको एक बात बहुत कचोटती थी I कि उसका कोई भाई या बहन नहीं था I गांव के बच्चे उसको इस बात के लिए बहुत चिढ़ाते थे I तथा उसको अपने साथ भी नहीं खेलने देते थे I इससे वह बहुत दुखी रहती थी I

अनेक बार वह अपनी दादी से पूछती थी I कि उसका कोई भाई क्यों नहीं है I तब उसकी दादी उसको प्रेम से समझाती कि कौन कहता है कि तेरा कोई भाई नहीं है I वह है ना कृष्ण कन्हैया वही तेरा भाई है I

यह कहकर दादी लड्डू गोपाल की ओर संकेत कर देती I चंदा की झोपड़ी में एक पुरानी किन्तु बहुत सुंदर लड्डू गोपाल की प्रतिमा थी I जो उसके दादा जी लाए थे I चंदा की दादी उनकी बड़ी मन से सेवा किया करती थी I Please read also-भगवान अपने भक्तों की रक्षा कैसे करते हैं I

बहुत प्रेम से उनकी पूजा करती और उनको भोग लगाती थी I निर्धन स्त्री पकवान मिष्ठान कहां से लाए जो उसके खाने के लिए रुखा-सूखा होता वही पहले भगवान को भोग लगाती I फिर चंदा के साथ बैठकर खुद खाती I चंदा के प्रश्न सुनकर उ न लड्डू गोपाल की ओर संकेत कर देती I

बालक मन चंदा लड्डू गोपाल को ही अपना भाई मानने लगी I वह जब दुखी होती तो लड्डू गोपाल के सम्मुख बैठकर उनसे बातें करने लगती और कहती कि भाई तुम मेरे साथ खेलने क्यों नहीं आते I सब बच्चे मुझको चिढ़ाते हैं I मेरा उपहास करते हैं I

मुझको अपने साथ भी नहीं खेलने देते मैं अकेली रहती हूं I तुम क्यों नहीं आते I क्या तुम मुझसे रूठ गए हो ? जो एक बार भी घर नहीं आते I मैंने तो तुमको कभी देखा भी नहीं I अपनी बाल कल्पनाओं में खोई हुई चंदा लड्डू गोपाल से अपने मन का सारा दुख कह देती I

चंदा का प्रेम निश्चल था I वह अपने भाई को पुकारती थी I उसके प्रेम के आगे भगवान भी नतमस्तक हो जाते थे I किंतु उन्होंने कभी कोई उत्तर नहीं दिया I एक दिन चंदा ने अपनी दादी से पूछा दादी मेरे भाई घर क्यों नहीं आते I वह कहां रहते हैं I तब दादी ने उसको टालने के उद्देश्य से कहा तेरा भाई जंगल में रहता है I

एक दिन वह अवश्य आएगा I चंदा ने पूछा क्या उसको जंगल में डर नहीं लगता I वह जंगल में क्यों रहता है I तब दादी ने उत्तर दिया नहीं वह किसी से नहीं डरता I उसको गांव में अच्छा नहीं लगता इसीलिए वह जंगल में रहता है I धीरे-धीरे रक्षाबंधन का दिन निकट आ गया I

गांव में सभी लड़कियों ने अपने भाइयों के लिए राखियां खरीदीं I वह सब चंदा को चिढ़ानी लगी कि तेरा तो कोई भाई नहीं ! तू किसको राखी बांधेगी ! Please Read Also-सामर्थ्य अनुसार धन, ज्ञान,शिक्षा का सदुपयोग

अब चंदा का सब्र का बांध टूट गया I वह घर आकर जोर-जोर से रोने लगी I दादी के पूछने पर उसने सारी बात बताई I उसकी दादी भी बहुत दुखी हुई I उसने चंदा को प्यार से समझाया I कि मेरी बच्ची तू मत रो तेरा भाई अवश्य आएगा I किंतु चंदा का रोना नहीं रुका वह लड्डू गोपाल की प्रतिमा के पास जाकर उससे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी I

और बोली कि भाई तुम क्यों नहीं आते, सब भाई अपनी बहन से राखी बनवाते हैं I फिर तुम क्यों नहीं आते I उधर गोविंदा चंदा की समस्त चेष्टाओं के साक्षी बन रहे थे I रोते-रोते चंदा को याद आया कि दादी ने कहा था I उसका भाई जंगल में रहता है I बस फिर क्या था I

वह दादी को बिना बताए, नंगे पैर ही जंगल की ओर दौड़ी I उसने मन में ठान लिया था कि वह आज अपने भाई को लेकर ही आएगी I जंगल की कांटों भरी राह पर वह मासूम दौड़ी जा रही थी I श्री गोविंद उसके साक्षी बन रहे थे I

तभी श्री हरि गोविंद पीड़ा से कराह उठे I उनके पांव से रक्त बह निकला I आखिर हो भी क्यों ना ? श्रीहरि का कोई भक्त पीड़ा में हो और भगवान को पीड़ा ना हो यह कैसे संभव है I जंगल में नन्ही चंदा के पांव में कांटा लगा, तो भगवान भी पीड़ा से कराह उठे I

उधर चंदा के पैरो में भी रक्त बह निकला I वह वही बैठ कर रोने लगी, तभी भगवान ने अपने पांव में उस स्थान पर हाथ फेरा, जहाँ कांटा लगा था I पलक झपकते ही चंदा के पाव से रक्त बहना बंद हो गया I और दर्द भी नहीं रहा I चंदा फिर से उठी और जंगल की ओर दौड़ चली I

इस बार उसका पांव कांटों से छलनी हो गया I किंतु वह नन्ही सी जान बिना चिंता किए दौड़ती ही जा रही थी I उसको अपने भाई के पास जो जाना था I अंततः एक स्थान पर थक कर रुक गई I और रो-रो कर पुकारने लगी भाई कहां हो, तुम आते क्यों नहीं I

अब श्री गोविंद के लिए एक पल भी रुकना कठिन था I वह तुरन्त उठे और एक ग्यारह-बारह वर्ष के सुंदर से बालक का रूप धारण किया और पहुंच गए चंदा के पास I उधर चंदा थक कर बैठ गई थी I Please Read Also-Janmashtami 2021 कब है, जानें व्रत विधि एवं महत्त्व

और सर झुका कर रोए जा रही थी I तभी उसके सर पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ और एक आवाज सुनाई दी मैं आ गया मेरी बहन तुम क्यों रो रही है I देखिए कैसे भक्तवत्सल भगवान हैं I जो अपने नन्हे से भक्त के लिए एक बच्चे का रूप धारण करके आए I

सीताराम सीताराम सीताराम कहिये हिंदी लिरिक्स

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी