मंदिर जाने के कुछ जरूरी कारण जिन्हें हम नही जानते हैं।

मंदिर जाने के कुछ जरूरी कारण जिन्हें हम नही जानते हैं।

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मंदिर जाने के कुछ जरूरी कारण जिन्हें हम नही जानते हैं।

पहला कारण :

मंदिर जाना इसलिए जरूरी है कि वहां जाकर आप यह सिद्ध करते हैं कि आप देव शक्तियों में विश्वास रखते हैं तो देव शक्तियां भी आपमें विश्वास रखेंगी। यदि आप नहीं जाते हैं तो आप कैसे व्यक्त करेंगे की आप परमेश्वर या देवताओं की तरफ है.? यदि आप देवताओं की ओर देखेंगे तो देवता भी आपकी ओर देखेंगे। और यह भाव मंदिर में देवताओं के समक्ष जाने से ही आते हैं।

दूसरा कारण :

अच्छे मनोभाव से जाने वाले की सभी तरह की समस्याएं प्रतिदिन मंदिर जाने से समाप्त हो जाती है। मंदिर जाते रहने से मन में दृढ़ विश्वास और उम्मीद की ऊर्जा का संचार होता है। विश्वास की शक्ति से ही समृद्धि, सुख, शांति और कल्याण की प्राप्ति होती है।

तीसरा कारण :

यदि आपने कोई ऐसा अपराध किया है कि जिसे आप ही जानते हैं तो आपके लिए प्रायश्चित का समय है। आप क्षमा प्रार्थना करके अपने मन को हल्का कर सकते हैं। इससे मन की बैचेनी समाप्त होती है और आप का जीवन फिर से सामान्य हो जाता है।

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चौथा कारण :

मंदिर में शंख और घंटियों की आवाजें वातावरण को शुद्ध कर मन और मस्तिष्क को शांत करती हैं। धूप और दीप से मन और मस्तिष्क के सभी तरह के नकारात्मक भाव हट जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

पांचवां कारण :

मंदिर के वास्तु और वातावरण के कारण वहां सकारात्मक उर्जा ज्यादा होती है। प्राचीन मंदिर ऊर्जा और प्रार्थना के केंद्र थे। हमारे प्राचीन मंदिर वास्तुशास्त्रियों ने ढूंढ-ढूंढकर धरती पर ऊर्जा के सकारात्मक केंद्र ढूंढे और वहां मंदिर बनाए। मंदिर में शिखर होते हैं।

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शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है।

छटा कारण :

मंदिर में उपस्थित व्यक्ति के मन में चंचलता चपलता कम होती है, और पवित्रता के विचार ज्यादा प्रबल होते हैं, चाहे वह ईश्वर के डर से या फिर ईश्वर के प्रति प्रेम व श्रद्धा के कारण। लेकिन इस तरह का निश्चल मन अपने आसपास के वातावरण को पवित्र बनाता है, इसलिए मंदिर में स्वत ही सकारात्मकता पवित्रता वाली ऊर्जा कुछ ज्यादा होती है जिसका लाभ वहां जाने वाले प्रत्येक व्यक्तियों को मिलता है।

अत: हम सब मंदिर जरूर जाएं और अपने साथ अपने बच्चों को भी लेकर जाएं, उन्हें भी अपनी संस्कृति व परंपराओं से अवगत कराएं।

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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी