मुरली मनोहर गोविंद गिरधर नमामि कृष्णम् लिरिक्स
मुरली मनोहर गोविंद गिरधर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्।
ये कृष्ण प्रेमी कहे निरंतर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्।।
राजीव लोचन अतीव सुंदर
राजीव लोचन अतीव सुंदर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्
मुरली मनोहर गोविंद गिरधर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्।।
दीन जनों की आस तुम्हीं हो
भक्तों का विश्वास तुम्हीं हो
योगी सार्थक आराधक के
अंतर का आभास तुम्हीं हो
अंतर का आभास तुम्हीं हो
है सृष्टि सारी तुम्हीं पे निर्भर
है सृष्टि सारी तुम्हीं पे निर्भर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्
मुरली मनोहर गोविंद गिरधर
नमामि कृष्णम् नमामि कृष्णम्।।
भजो रे मन हरि हरि मोहन मुरारी
भजो रे मन हरि हरि मोहन मुरारी
मोहन मुरारी गोविंद गिरिधारी
गोविंद गिरिधारी सकल दुःख हारी
ऐ भजो रे मन हरि हरि मोहन मुरारी
भजो रे मन हरि हरि कृष्ण मुरारी।।
गोविंद अनमोल है गोपाल अनमोल
हरि हरि बोल
हरि भक्ति रस के प्याले तू भक्ति रस तो घोल
बोल हरि हरि बोल
मोहन को देखना है तो अंतर के नैन खोल
हरि हरि बोल
बिकते हैं दीनानाथ प्रेम भावना के मोल
हरि हरि बोल
हरि हरि बोल
समझ ना आए हमको
समझ ना आए हमको गूढ़ बातें तुम्हारी
एक सांवरे सलोने के हम हैं पुजारी
एक ब्राह्मण के छोरे से हुई है अपनी यारी
कृष्ण मुरारी हो कृष्ण मुरारी
कृष्ण मुरारी मेरा कृष्ण मुरारी
ऐ भजो रे मन हरि हरि कृष्ण मुरारी
सब भजो रे मन हरि हरि कृष्ण मुरारी।।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
“कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा
कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा”
ऐ भजो रे मन हरि हरि कृष्ण मुरारी
ऐ भजो रे मन हरि हरि कृष्ण मुरारी
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे।
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी