नगरी हो अयोध्या सी रघुकुल सा घराना हो भजन
नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो
चरण हो राघव के, जहां मेरा ठिकाना हो।
लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो
स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराई हो
स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराई हो
नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो
चरण हो राघव के, जहां मेरा ठिकाना हो
चरण हो राघव के, जहां मेरा ठिकाना हो
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हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो
लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो
लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो
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श्रद्धा हो श्रवण जैसी, शबरी सी भक्ति हो
हनुमत के जैसी, निष्ठा और शक्ति हो
हनुमत के जैसी, निष्ठा और शक्ति हो
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मेरी जीवन नैय्या हो, प्रभु राम खिवैया हो
राम कृपा की सदा, मेरे सर पे छईया हो
राम कृपा की सदा, मेरे सर पे छईया हो
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सरयू का किनारा हो, निर्मल जल धारा हो
दरश मुझे भगवन, जिस घडी तुम्हारा हो
दरश मुझे भगवन, जिस घडी तुम्हारा हो
नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो
चरण हो राघव के, जहां मेरा ठिकाना हो।
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी