नवधा भक्ति ! कैसे प्रभु श्रीराम द्वारा माता शबरी को प्राप्त हुई
भगवान श्री राम जब शबरी के आश्रम में आते हैं I तो शबरी उनका स्वागत करती हैं I उनके श्री चरणों को पखारती हैं I और उन्हें आसन पर बैठाती हैं I साथ में उन्हें रस भरे कंदमूल फल लाकर अर्पित करती हैं I
प्रभु बार-बार उन फलों के स्वाद की सराहना करते हुए आनंद पूर्वक उनका अस्वादन करते हैं I और माता शबरी कहती हैं I
प्रभु ! क्या आप मेरे गुरु बनकर मुझे अनुग्रहित नहीं करेंगे I इस शरीर को त्यागने से पहले मैं आपसे भक्ति का ज्ञान प्राप्त करना चाहती हूं I मैंने अपने गुरुदेव से नवधा भक्ति की माहिम सुनी है I
इसके पश्चात भगवान श्री राम शबरी के समक्ष नवधा भक्ति का स्वरूप प्रकट हुए प्रकट करते हुए उनसे कहते हैं I
प्रथम संत सत्संग सुहाना, साधु संग से उपजे ग्याना II
दूजी भक्ति परम सुखदाता, चित्त लगा सुन मेरी गाथा II
तज अभिमान करो गुरु सेवा, ब्रह्मा विष्णु शिव सम गुरुदेवा II
जो निष्कपट मेरा गुण गायन, करे सो पावें राम रसायन II
दृढ़ विश्वास राखि निज अंतर, राम मंत्र कर जाप निरंतर II
इंद्रीय बस कर चरित्र संभालो, सद्गुण धार धर्म नित पालो II
सारा जगत राममय में जानो, मुझसे अधिक संतो को मानो II
एक संतोष सकल सुख लाए, सपनहु गिनो ना दोष पराए II
सरल प्रकृति निश्चल व्यवहारी, मुझ पर रखो भरोसा भारी II
कोई भी स्थिति हो जीवन में, हर्ष विषाद न रखना मन में II
नवधा भक्ति ह्रदय जो राखें, मेरी कृपा का फल वह चाखें II
तब माता शबरी प्रभु राम से विनती कर कहती हैं I हे ! कृपा निधान आप ऐसे ही मुझ पर कृपा बनाए रखिए और मुझे अपने गुरुदेव के पास जाने की आज्ञा दीजिए I
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी