ॐ त्र्यंबकम यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् l
उर्वारुकमिव बन्धंनांत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् l l
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ :-
महामृत्युंजय मंत्र अर्थात मृत्यु को जीतने वाला मंत्र तथा जिसे त्र्यंबकम मंत्र भी कहा जाता है l इस मंत्र में भगवान शिव की स्तुति हेतु की गई एक प्रार्थना है, और साथ ही इस मंत्र में भगवान शिव को मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है l और यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से माना जाने वाला मंत्र है। ये भी पढें: राधा साध्यम साधनं यस्य राधा मंत्र हिंदी लिरिक्स
महामृत्युंजय मंत्र के कई नाम और रूप है, इसे भगवान शिव के उग्र रूप की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है। भगवान शिव के तीन आंखों की ओर इशारा करते हुए त्र्यंबकम मंत्र और इसे कभी-कभी मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना जाता है।
क्योंकि इस मंत्र को ऋषि-मुनियों ने वेदों का हृदय भी कहा है, चिंतन और ध्यान के लिए प्रयोग किए जाने वाले अनेक मंत्रों में इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है। ये भी पढें: श्री कृष्ण शरणम ममः श्री कृष्ण शरणम ममः भजन
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ :- इस पूरे संसार के पालनहार तीन नेत्र वाले भगवान शिव की हम पूजा करते हैं। इस पूरे विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शंकर हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्ति प्रदान करें, जिससे कि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।
हे जगत के पालनहार प्रभो ! भक्तजनों को संसार में व्याप्त भय से मुक्ति दीजिये।
महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद :
ऋषि मृकण्ड के यहां बड़े तपस्या से एक पुत्र हुआ, लेकिन ज्योतिरविदों ने महर्षि के खुशी के पल को दुख में बदल दिया। उन्होंने कहा कि आपके पुत्र की आयु अल्पायु है, ऋषि मृकण्ड ने अपनी पत्नी को समझाया की चिंता मत करो। नियति जीवन के कर्म के अनुसार ही आयु देती है, किंतु मेरे स्वामी समर्थ है, संसार में भाग्य को परिवर्तित कर देना, भगवान शिव के लिए एक विनोद मात्र है। ये भी पढें: श्री कृष्णाष्टकम एवं कृपा कटाक्ष स्तोत्र
ऋषि मृकण्ड ने अपने पुत्र को कुमार अवस्था से ही शिव मंत्र की दीक्षा दी, और पुत्र मार्कंडेय ने शिव आराधना प्रारंभ की। ऋषि मृकण्ड ने पुत्र को उसका भविष्य समझा दिया, कि आप अल्पायु है, आपको भगवान शिव ही मृत्यु से बचा सकते हैं, मार्कंडेय के माता-पिता दिन रात दिन रहे थे।
आज 12 वर्ष पूरे होने को आए हैं, और मारकंडे भी पिता के वचनों को स्वीकार कर भगवान शिव की आराधना करने लग गए। मार्कंडेय ने महामृत्यु मंत्र की रचना की। मार्कंडेय लगातार महामृत्युंजय मंत्र का जप कर रहे थे। तभी यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आए। ये भी पढें: चौरासी लाख योनियों में क्या क्या जन्म मिलता है
लेकिन यमराज के दूत उन्हें ले जाने का सास नहीं कर पाए। और यमराज के पास बिना प्राण लिए ही वापस लौट गए, उन्होंने जाकर अपने स्वामी यमराज से निवेदन किया। कि हम मार्कंडेय तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।
इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा। यमराज ने अपना दण्ड उठाया। और क्षण भर में मार्कंडेय के पास पहुंच गए। बालक मार्कंडेय ने काले रक्त नेत्र काले पास धारी यमराज को देखा, तो सम्मुख की लिंग मूर्ति से लिपट गया।
अचानक एक अद्भुत अपूर्व प्रचंड प्रकाश से आँखें चकाचौंध हो गई। शिवलिंग से तेजमय त्रिनेत्र धारी भगवान चंद्रशेखर (शिव ) प्रगट हो गए। और उन्होंने त्रिशूल उठाकर यमराज से बोले, हे यमराज तुमने मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस कैसे किया, यमराज ने पहले से ही हाथ जोड़कर अपना मस्तक झुका लिया था।
और कहा कि हे, त्रिनेत्र धारी मैं भी आपका सेवक हूं, कर्म के अनुसार किसी भी जीव को इस लोक से उस लोक में ले जाने का कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है। तब त्रिनेत्र धारी भगवान चंद्रशेखर ने कहा कि यह आप इसे नहीं ले जा सकते। क्योंकि मैंने इसे अमरत्व दिया है ,महामृत्युंजय प्रभु की आज्ञा यमराज कैसे अस्वीकार कर सकते थे। ये भी पढें: भक्त करमानन्द से डांट खाने के लिए ठाकुरजी ने कैसे लीला की !
तब यमराज खाली हाथ लौट गए। मार्कंडेय ने यह देखकर भोलेनाथ को सिर झुकाया। और उनकी स्तुति करने लगे, इस मंत्र के द्वारा चाहा गया वरदान उसका संपूर्ण रूप से उसी समय मार्कंडेय को प्राप्त हो गया। समस्त पाप दुःख, शोक भय का हरण करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। महामृत्युंजय जप का पाठ करना लाभकारी एवं कल्याणकारी होता है। ये भी पढें: श्रीकृष्ण (बाल गोपाल) के बचपन की मनमोहक कथा
om tryambakam yajamahe sugandhim pushtivardhanam
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी