राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

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राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई : राजा परीक्षित को जब यह पता चला कि मैं सातवें दिन मरने वाला हूं I तब उन्होंने अपनी मधुर वाणी में महायोगी श्री सुकदेव जी

से अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए आग्रह किया I राजा परीक्षित बोले मुनिवर कृपा करके आप यह बताइए I कि मरणासन्न प्राणी के लिए क्या कर्तव्य है ?

उसे किस कथा का श्रवण करना चाहिए ? किस देवता का जप, अनुष्ठान, स्मरण तथा भजन करना चाहिए I और किन-किन बातों का त्याग कर देना चाहिए ? ये भी पढेंसांवरे को दिल में बसा कर तो देखो हिंदी लिरिक्स

समस्त धर्मों के ज्ञाता परम ज्ञानी महा योगेश्वर श्री सुकदेव जी बोले – हे राजा परीक्षित एक राजा होने के नाते तुम्हें अपने कल्याण के साथ साथ सभी के कल्याण की चिंता रहती है I इसलिए तुमने यह अति उत्तम प्रश्न पूछा है I इससे तुम्हारे कल्याण के साथ-साथ दूसरों का भी कल्याण अवश्य ही होगा I

मनुष्य जन्म लेने के पश्चात संसार में माया जाल मैं फंस जाता है और उसे मनुष्य योनि का वास्तविक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता I उसका दिन धंधों में और रात नींद तथा स्त्री प्रसंग में बीत जाता है I अज्ञानी मनुष्य स्त्री, पुत्र, शरीर, धन, संपत्ति तथा सम्बन्धियों को अपना सब कुछ समझ बैठता है I

वह मूर्ख पागल की भांति उनमें रम जाता है, और उनके मोह में अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है I पर अंत में मृत्यु का ग्रास होकर चला जाता है I मनुष्य को मृत्यु के आने पर भयभीत तथा व्याकुल नहीं होना चाहिए I उस समय अपने ज्ञान से वैराग्य लेकर संपूर्ण मोह को दूर कर लेना चाहिए I ये भी पढेंकाली काली अलकों के फंदे क्यों डाले हिंदी भजन

अपनी इंद्रियों को वश में करके सांसारिक विषय वासनाओं से हटाकर चंचल मन को दीपक की ज्योति के समान स्थिर कर लेना चाहिए I इस समस्त प्रक्रिया के मध्य ॐ का निरंतर जाप करते रहना चाहिए I जिससे कि मन इधर-उधर ना भटके I

इस प्रकार ध्यान करते करते मन भगवत प्रेम के आनंद से भर जाता है I फिर चित्त वहां से हटने को नहीं करता है I यदि मूड मन रजोगुण और तमोगुण के कारण स्थिर ना रहे, तो साधक को व्याकुल ना होकर धीरे-धीरे धैर्य के साथ उसे अपने वश में करने का उपाय करना चाहिए I

उसी योग धारणा से योगी को भगवान के दर्शन हृदय में हो जाते हैं, और भक्ति की प्राप्ति होती है I राजा परीक्षित ने पूछा – हे मुनि श्रेष्ठ ! वह कौन सी धारणा है, जो अज्ञान रूपी मैल को शीघ्र दूर कर देती है, और उस धारणा को कैसे किया जाता है I

उनके इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुकदेव जी ने कहा -हे परीक्षित ! योग की साधना करने वाले साधक को सबसे पहले अपने शरीर को वश में करने के लिए यथोचित आसन में बैठना चाहिए I ये भी पढेंवृंदावन धाम अपार जपे जा राधे हिंदी भजन

तत्पश्चात क्रियाशक्ति को वश में करने के लिए प्राणायाम का साधन करना चाहिए I साथ ही साथ विषय एवं कामनाओं को त्याग कर इंद्रियों को अपने नियंत्रण में करना चाहिए I

फिर ज्ञान का प्रयोग कर मन को चारों ओर से इस प्रकार समेट लेना चाहिए, जैसे कि कछुआ अपने सिर पैर को समेट लेता है I इतना करने के पश्चात बुद्धि और ज्ञान से अपने मन को वश में करके भगवान के विराट स्वरूप का ध्यान करना चाहिए I

सुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा का रसपान करवाया भगवान के विराट स्वरूप का ध्यान करने और भागवत कथा सुनने से राजा परीक्षित को मुक्ति और मोक्ष दोनों की प्राप्ति हुई

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