सच में प्रेम की अनुभूति शब्दों से परे है-श्रीकृष्णचरितामृतम्

सच में प्रेम की अनुभूति शब्दों से परे है-श्रीकृष्णचरितामृतम्

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सच में प्रेम की अनुभूति शब्दों से परे है-श्रीकृष्णचरितामृतम् :

उद्धव बोले गोपियों के अनुष्ठान को अपूर्ण करनें की ताकत है किसी में ? स्वयं देवी कात्यायनी में भी नही है। अब दर्शन करो उन गोपियों ने सुन्दर पवित्र हृदय से कात्यायनी भगवती की आराधना अनुष्ठान प्रारम्भ की थी, एक महिने तक का अनुष्ठान था ।

वैसे श्रीकृष्ण प्रथम दिन ही उनकी कामना पूरी कर सकते थे। पर नही किया कारण, ? कारण ये कि जितना विरह प्रियतम के लिये हृदय में जलता रहेगा । उतना ही प्रेम और पक्व होकर मधुर बन जाएगा। प्रेम मार्ग में प्रतीक्षा की बड़ी महिमा है। Please Read Alsoश्री कृष्ण भजन बहुत ही सुंदर एवं मनमोहक रविंद्र जैन जी द्वारा रचित

प्यारे के निरन्तर स्मरण से हृदय के समस्त अशुभ नष्ट हो जाते हैं। मलीन वासनाएं हृदय में जन्मों जन्मों से जमा हैं। सूक्ष्म रहती हैं । वे वासनाएं भी जल जाएँ । ऐसी कृपा करके एक महिने तक श्याम सुन्दर ने गोपियों को अनुष्ठान करने दिया।

आज अंतिम दिन है, सब गोपियाँ ब्रह्ममुहूर्त से भी पूर्व 3 बजे ही आ गयीं । यमुना के घाट पर वस्त्रों को किनारे में रख दिए । ये घाट स्त्रियों का था और अन्धकार भी होता ही है उस समय। क्यों की सुबह के तीन बज रहे थे, इस समय कौन आएगा वहाँ ?

सम्पूर्ण वस्त्रों को उतार कर सब गोपियाँ खिलखिलाती हुयी यमुना में उतरीं और यमुना में खेलने लगीं। उस दिन की बात ! एक गोपी बोलने जा रही थी, पर चुप हो गयी, यमुना जल को उछालती हुयी दूसरी गोपी बोली बता ना ! क्या हुआ था उस दिन ? क्या तुझे भी छेड़ दिया था उस प्यारे ने ।

अरी ! छेड़ा कहाँ हद्द कर दी थी । उस दिन वैसे बात तो दो वर्ष पूर्व की है। वो सखी दो वर्ष पहले की बात बता रही थी। सब गोपियाँ उसके पास आ गयीं बता ना ? खेल रहे थे, अपने सखाओं के साथ गेंद श्याम सुन्दर ! फिर चुप हो गयी वो सखी अरी ! बोल ! हमसे का लाज ?

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गेंद खो गया, खेलते हुए कहीं चला गया होगा । मैं उधर से गुजरी तो मेरे पीछे ही पड़ गया वो साँवरा ! क्या कहके ? दूसरी गोपी ने पूछा। मेरी गेंद तेनें छुपा ली है हाय ! सब गोपियाँ हँसनें लगीं जोर-जोर से हँसनें लगीं उनकी खिलखिलाहट से वातावरण प्रेमपूर्ण हो गया था।

फिर क्या कहा तेनें ? जब हँसी कुछ रुकी तब एक गोपी नें पूछा। मैं क्या कहती पागल ! मैं तो लाज के मारे ! कुछ देर रुक कर वो सखी फिर बोली, मुझ से कह रहा था ! तेनें दो दो गेंद क्यों छुपाएँ हैं ! Please Read Also-श्रीकृष्ण को पतिरूप प्राप्ति के लिए गोपियों द्वारा कात्यायनी पूजन करना

गोपियों की हँसी अब फूट पड़ी थी कोई हाय ! हाय वीर ! कहकर शरमा रही थीं, तो कोई नटखट ने कुछ और तो नही किया ? ये कहकर उस सखी को छेड़ भी रही थीं।

यहाँ होता ना ! मैं तो उसे बताती एक गोपी को काम ज्वर चढ़ गया था, मैं उसके गालों को पकड़ कर वो बस इतना ही बोल पाई फिर तो डुबकी एक साथ लगानें लगी वो यमुना में। अरी ! ज्यादा डुबकी मत लगा सर्दी है कहीं सर्दी गढ़ लग गयी तो !

गढ़ तो श्याम सुन्दर गया है हाय ! सर्दी की क्या मज़ाल की वो गढ़ जाए, हाँ गर्मी चढ़ रही है तुझे तो वीर ! लगा डुबकी ये कहते हुए सब गोपियाँ भी डुबकी लगानें लगीं।एक दूसरे पर जल उछालनें लगीं कमल पुष्प को तोड़कर एक दूसरे पर फेंकनें लगीं ।

कमल के पराग चारों ओर फ़ैल रहे थे, उनकी सुगन्ध से वातावरण और मादक हो चला था। ओह ! सखी ! बहुत समय हे गयो, अब तो यमुना जल से बाहर निकलो । एक गोपी सबको समझानें लगी और कात्यायनी भगवती की पूजा भी तो करनी है ।

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फिर मन्त्र का जाप भी चलो चलो । सब गोपियाँ ये कहते हुए जैसे ही बाहर आने को उद्यत हुयीं वस्त्र कहाँ हैं हमारे ? एक गोपी ने देखा किनारे पर वस्त्र ही नही है। फिर जल में बैठ गयीं शरमा कर वस्त्र कहाँ है ? Please Read Alsoद्वारिका पुरी धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है

एक दूसरी से पूछनें लगीं । बन्दर ले गए, नही-नही इतनें सुबह कहाँ बन्दर ? आँधी आई नहीं, तूफ़ान आया नही, फिर वस्त्र कहाँ गए ? तभी वो देखो ! एक गोपी ने दिखाया ऊपर कदम्ब का वृक्ष था, एक पुराना वो वृक्ष यमुना के तट पर ही था ।

उसकी एक डाली यमुना के मध्य तक गयी थी श्याम सुन्दर ! हाय ! ये कैसे आ गये ? सखियाँ मत्त हो यमुना में अपने अंगों को छुपा रही थीं। पर श्याम सुन्दर ने कदम्ब के चारों ओर गोपियों के वस्त्रों को लटका दिया है लहँगा , फरिया सब इधर-उधर और स्वयं उस डाल पर लेट गए हैं ।

उल्टे और नीचे देख रहे हैं । अपनी प्यारी गोपियों को कि मेरे बारे में ये क्या क्या कहती रहती हैं । गोपियाँ आनन्दित हैं, अति आल्हादित हैं, क्योंकी अनुष्ठान पूर्ण हुआ है इनका । ये जिसको चाह रही थीं वो स्वयं प्रकट हो गया था ।

जिससे माँग रही थीं नन्दनन्दन, वो भगवती नही प्रकट हुयीं बल्कि जिसे माँग रही थीं वो प्रकट हो गया ।

उद्धव की वाणी अवरुद्ध हो गयी ! आज वो प्रेम के रस में सरावोर हो गये थे । ये प्रेम की ऊँचाई इन गोपियों की इतना ही बोल सके उद्धव फिर मौन हो गए ।

राजा परीक्षित को कैसे मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी