सामर्थ्य अनुसार धन, ज्ञान,शिक्षा का सदुपयोग

सामर्थ्य अनुसार धन, ज्ञान,शिक्षा का सदुपयोग

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सामर्थ्य के अनुसार धन, ज्ञान और शिक्षा का सदुपयोग

सामर्थ्य के अनुसार धन, ज्ञान और शिक्षा का सदुपयोग – एक गांव में धर्मदास नाम का एक व्यक्ति रहता था I बातें तो बड़ी ही अच्छी करता था I पर एकदम कंजूस था कंजूस भी ऐसा वैसा नहीं बिल्कुल मक्खीचूस था I चाय की बात तो छोड़ो किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछता था I साधु-संतों और भिखारियों को देखकर तो उसके प्राण ही सूख जाते कि कहीं कोई कुछ मांगना बैठे I

एक दिन उसके दरवाजे पर एक महात्मा आए और धर्मदास से सिर्फ एक रोटी मांगी I पहले तो धर्मदास ने महात्मा को कुछ देने से मना कर दिया I लेकिन तब भी वह वही खड़ा रहा I तो उस महात्मा को आधी रोटी देने लगा I आधी रोटी देखकर महात्मा ने कहा कि अब तो मैं आधी रोटी नहीं पेट भर कर खाना खाऊंगा I

इस पर धर्मदास ने कहा कि अब वह कुछ नहीं देगा महात्मा रातभर चुप-चाप भूखा-प्यासा धर्मदास के दरवाजे पर खड़ा रहा I सुबह जब धर्मदास ने महात्मा को अपने दरवाजे पर खड़ा देखा तो सोचा I कि अगर मैंने इसे भरपेट खाना नहीं खिलाया और यह भूख प्यास से यही मर गया तो मेरी बदनामी होगी I

बिना कारण साधु की हत्या का दोष लगेगा I धर्मदास ने महात्मा से कहा कि बाबा तुम भी क्या याद करोगे I पेट भर कर खाना खा लो ! महात्मा भी कोई ऐसा वैसा नहीं था धर्मदास की बात सुनकर महात्मा ने कहा कि अब मुझे खाना नहीं खाना I

मुझे तो एक कुआं खुदवा दो I लो अब कुआं बीच में कहां से आ गया धर्मदास ने साधु महाराज से कहा I धर्मदास ने कुआं खुदवाने से साफ मना कर दिया साधु महाराज अगले दिन फिर रात भर चुपचाप भूखा-प्यासा धर्मदास के दरवाजे पर खड़ा रहा I

अगले दिन सुबह जब धर्मदास ने साधु महात्मा को भूखा प्यासा अपने दरवाजे पर ही खड़ा पाया I तो सोचा कि अगर मैंने कुआं नहीं खुदवाया तो यह महात्मा इस बार जरूर भूख और प्यास से मर जाएगा और मेरी बदनामी होगी I यह भी पढ़ें-चिन्तन,श्रीकृष्ण के जीवन की परिस्थितियां

धर्मदास ने काफी सोच विचार किया और महात्मा से कहा कि साधु बाबा मैं तुम्हारे लिए एक कुआं खुदवा देता हूं I और इससे आगे अब कुछ मत बोलना I नहीं मैं एक नहीं अब तो दो खुदवा कुआं खुदवाने पड़ेंगे महात्मा की फरमाइशें बढ़ती जा रही थी I

धर्मदास कंजूस जरूर था बेवकूफ नहीं I उसने सोचा कि अगर मैंने दो कुआं खुदवाने से मना कर दिया तो यह चार कुए खुदवाने की बात करने लगेगा I इसलिए धर्मदास ने चुपचाप दो कुआं खुदवाने में ही अपनी भलाई समझी I

कुए खुद कर तैयार हुए तो उन में पानी भरने लगा जब कुआं में पानी भर गया तो महात्मा ने धर्मदास से कहा I दो कुआं में से एक कुआं में तुम्हें देता हूं I और एक अपने पास रख लेता हूं I मैं कुछ दिन के लिए कहीं जा रहा हूं लेकिन ध्यान में रहे ! मेरे कुए में से तुम्हें एक बूंद भी पानी नहीं निकालना है I

साथ ही अपने कुए में से सब गांव वालों को रोज पानी निकालने देना है I मैं वापस आकर अपने कुएं से पानी पीकर प्यास बुझा लूंगा I धर्मराज ने महात्मा वाले कुए के मुंह पर एक मजबूत ढक्कन लगवा दिया I सब गांव वाले रोज धर्मदास वाले कुएं से पानी भरने लगे I

लोग खूब पानी निकालते पर कुएं में पानी कम ना होता शुद्ध शीतल जल पाकर गांव वाले निहाल हो गए थे और महात्मा जी का गुणगान करते नहीं थकते I यह भी पढ़ें-एक बार श्री राधा नाम लेने की महिमा

एक वर्ष के बाद महात्मा उस गांव में आए I और धर्मदास से बोले कि उसका कुआं खोल दिया जाए I धर्मदास ने कुएं का ढक्कन हटवा दिया लोग यह देखकर हैरान रह गए ! कि कुएं में एक बूंद भी पानी नहीं था महात्मा ने कहा कि ऐसे कितना भी पानी क्यों न निकाला जाए वह कभी खत्म नहीं होता अपितु बढ़ता रहता है I

कुए का पानी न निकालने पर कुआं सूख जाता है I इसका स्पष्ट प्रमाण तुम्हारे सामने हैं Iऔर यदि किसी कारण से कुए का पानी न निकालने पर पानी नहीं भी सूखेगा तो यह सड़ अवश्य जाएगा और किसी काम में नहीं आएगा I महात्मा ने आगे कहा कुएं के पानी की तरह ही धन दौलत की भी तीन गतियां होती हैं I

उपयोग, नाश अथवा दुरुपयोग I

धन दौलत का जितना इस्तेमाल करोगे उतना ही बढ़ती जाएगी I धन दौलत का इस्तेमाल न करने पर कुएं के पानी की तरह धन दौलत निरर्थक पड़ी रहेगी I उसका उपयोग संभव नहीं रहेगा या अन्य कोई उसका दुरुपयोग कर सकता है I

अतः अर्जित धन दौलत का समय रहते सदुपयोग करना अनिवार्य है I ज्ञान की भी कमोबेश यही स्थिति होती है I धन दौलत से दूसरों की सहायता करने की तरह ही ज्ञान भी बांटते चलो I

हमारा समाज जितना अधिक ज्ञानवान जितना अधिक शिक्षित व जितना अधिक सुसंस्कृत होगा I उतना ही देश में सुख शांति और समृद्धि आएगी I फिर ज्ञान बांटने वाले अथवा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले का भी कुएं के जल की तरह ही कुछ नहीं घटता अपितु बढ़ता रहता है I

धर्मदास ने कहा गुरु जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं I मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है I इस घटना से धर्मदास को सही ज्ञान और सही दिशा मिल गई थी I

सदैव प्रसन्न रहिए जो प्राप्त है वही पर्याप्त है I

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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी