समस्त पापनाशक हिंदी स्तोत्र-अग्निपुराण

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समस्त पापनाशक हिंदी स्तोत्र एक सौ बहत्तरवां अध्याय-अग्निपुराण

पुष्कर कहते हैं – जब मनुष्यों का चित परस्त्रीगमन, परस्वापहरण एवं जीव हिंसा आदि पापों में प्रवृत्त होता है। तो स्तुति करने से उसका प्रायश्चित होता है।


उस समय निम्नलिखित प्रकार से भगवान श्रीविष्णु की स्तुति करे :

“सर्वव्यापी श्रीविष्णु को सदा नमस्कार है। श्रीहरि विष्णु को नमस्कार है। मैं अपने चित में स्थित सर्वव्यापी, अहंकारशून्य श्रीहरि को नमस्कार करता हूं। मैं अपने मानस में विराजमान अव्यक्त अनंत और अपराजित परमेश्वर को नमस्कार करता हूं। सबके पूजनीय जन्म और मरण से रहित, प्रभावशाली श्रीविष्णु को नमस्कार है। यह भी पढ़ें – विश्व के सभी स्थानों में श्री धाम वृन्दावन सर्वोच्च क्यों है

विष्णु मेरे चित में निवास करते हैं, विष्णु मेरी बुद्धि में विराजमान है, विष्णु मेरे अहंकार में प्रतिष्ठित हैं, और विष्णु मुझमें भी स्थित हैं। वे श्रीविष्णु ही चराचर प्राणियों के कर्मों के रूप में स्थित हैं, उनके चिंतन से मेरे पाप का विनाश हो। यह भी पढ़ें – ऋषि मुनियों द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा समय गणना तन्त्र

जो ध्यान करने पर पापों का हरण करते हैं और भावना करने से स्वप्न में दर्शन देते हैं, इंद्र के अनुज, शरणागत जनों का दुख दूर करने वाले उन पापहारी श्री विष्णु को मैं नमस्कार करता हूं।मैं इस निराधार जगत में अज्ञानाधंकार में डूबते हुए हाथ का सहारा देने वाले परात्परस्वरूप श्री विष्णु के सम्मुख प्रणत होता हूं।

सर्वेश्वरेश्वर प्रभुो ! कमलनयन परमात्मन ! ह्रषीकेश ! आपको नमस्कार है। इंद्रियों के स्वामी श्री विष्णुो ! आपको नमस्कार है। नृरसिंह ! अनंतस्वरूप गोविंद ! समस्त भूत-प्राणियों की सृष्टि करने वाले केशव ! मेरे द्वारा जो दुर्वचन कहा गया हो अथवा पाप पर्ण चिंतन किया गया हो, मेरे उस पाप का प्रशमन कीजिए । यह भी पढ़ें – 33 कोटि देवी-देवता है या 33 करोड़ I

आपके आपको नमस्कार है। केशव ! अपने मन के बस में हो कर मैंने जो ना करने योग्य अत्यंत उग्र पूर्ण चिंतन किया है, उसे शांत कीजिए। परमार्थपरायण ब्राह्मण प्रिय गोविंद ! अपनी मर्यादा से कभी च्युत ना होने वाले जगन्नाथ ! जगत का भरण- पोषण करने वाले देवेश्वर ! मेरे पाप का विनाश कीजिए।

मैंने मध्यान्ह, अपराह्न, सांयकाल एवं रात्रि के समय जानते हुए, अथवा अनजाने, शरीर, मन एवं वाणी के द्वारा जो पाप किया गया हो, ‘पुण्डरीकाक्ष’, ‘ह्रषीकेश’, ‘माधव’– आपके इन तीन नामों के उच्चारण से मेरे वे सब क्षीण हो जाएं। कमलनयन लक्ष्मीपते ! इंद्रियों के स्वामी माधव ! आज आप मेरे शरीर एवं वाणी द्वारा किए हुए पापों का हनन कीजिए। यह भी पढ़ें – पिता का प्यार और पुत्र के प्यार में क्या अंतर होता है

आज मैंने खाते, सोते, खड़े, चलते अथवा जागते हुए मन, वाणी और शरीर से जो भी नीच योनि एवं नर्क की प्राप्ति कराने वाला सूक्षम अथवा स्कूल पाप किया हो, भगवान वासुदेव के नामोच्चारण से सब विनष्ट हो जायँ। जो परब्रह्म, परमधाम और परम पवित्र हैं, उन श्रीविष्णु के संकीर्तन से मेरे पाप लुप्त हो जायँ।

जिसको प्राप्त होकर ज्ञानीजन पुनः लौट कर नहीं आते, जो गंध, स्पर्श आदि तन्नमात्राओं से रहित हैं, श्रीविष्णु का वह परमपद मेरे पापों का शमन करें। जो मनुष्य पापों का विनाश करने वाले इस स्तोत्र का पठन अथवा श्रवण करता है, वह शरीर मन और वाणीजनित समस्त पापों से छूट जाता है। यह भी पढ़ें – बनोगे राधा तो ये जानोगे की कैसा प्यार लिरिक्स

एवं समस्त पापों से मुक्त होकर श्रीविष्णु के परमपद को प्राप्त होता है। इसलिए किसी भी पाप के हो जाने पर इस स्तोत्र का जप करें। यह स्तोत्र पापसमूहों के प्रयश्चित के समान है। कृच्छू आदि व्रत करने वाले के लिए भी यह श्रेष्ठ है। स्तोत्र जप और व्रतरूप प्रायश्चित से संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिए इनका अनुष्ठान करना चाहिए।

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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी