श्री राधा दामोदर मन्दिर परिक्रमा परिक्रमा का फल

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श्री राधा दामोदर मन्दिर परिक्रमा परिक्रमा का फल

श्री राधा दामोदर मन्दिर परिक्रमा परिक्रमा का फल :- श्री राधा दामोदर मन्दिर वृंदावन जहाँ चार परिक्रमा करने पर सम्पूर्ण गिरिराज परिक्रमा का फल मिल जाता है। सनातन गोस्वामी का नियम था गिरि गोवर्द्धन की नित्य परिक्रमा करना।

अब उनकी अवस्था 90 वर्ष की हो गयी थी। नियम पालन मुश्किल हो गया था। फिर भी वे किसी प्रकार निभाए जा रहे थे। एक बार वे परिक्रमा करते हुए लड़खड़ाकर गिर पड़े। एक गोप बालक ने उन्हें पकड़ कर उठाया और कहा-

“बाबा, तो पै सात कोस की गोवर्द्धन परिक्रमा अब नाँय हय सके. परिक्रमा को नियम छोड़ दे ।

बालक के स्पर्श से उन्हें कम्प हो आया । उसका मधुर कण्ठस्वर बहुत देर तक उनके कान मे गूंजता रहा । पर उन्होंने उसकी बात पर ध्यान न दिया परिक्रमा जारी रखी। एकबार फिर वे परिक्रमा मार्ग पर गिर पड़े। दैवयोग से वही बालक फिर सामने आया, उन्हें उठाते हुए बोला-

“बाबा, तू बूढ़ो हय गयौ है, तऊ माने नाँय परिक्रमा किये बिना ठाकुर प्रेम ते रीझें, परिश्रम ते नाँय

फिर भी बाबा परिक्रमा करते रहे पर वे एक संकट में पड़ गये । बालक की मधुर मूर्ति उनके हृदय में गड़ कर रह गयी थी। उसकी स्नेहमयी चितवन उनसे भुलायी नहीं जा रही थी । वे ध्यान में बैठते तो भी उसी की छबि उनकी आँखों के सामने नाचने लगती थी। Please Read Also-श्री राम और शिवजी के बीच युद्ध हुआ क्या आप जानते हैं।

खाते-पीते, सोते-जागते हर समय उसी की याद आती रहती थी I एक दिन जब वे उसकी याद में खोये हुए थे I उनके मन में सहसा एक स्पंदन हुआ, एक नयी स्फूर्ति हुई I वे सोचने लगे एक साधारण व्रजवासी बालक से मेरा इतना लगाव !

उसमें इतनी शक्ति कि मुझ वयोवृद्ध वैरागी के मन को भी इतना वश में कर ले कि मैं अपने इष्ट तक का ध्यान न कर सकूँ ! नहीं, वह कोई साधारण बालक नहीं हो सकता I जिसका इतना आकर्षण है, तो क्या वे मेरे प्रभु मदन गोपाल ही हैं, जो यह लीला कर रहे हैं?

एक बार फिर यदि वह बालक मिल जाय तो मैं सारा रहस्य जाने वगैर न छोड़ूँ । संयोगवश एक दिन परिक्रमा करते समय वह मिल गया। फिर परिक्रमा का नियम छोड़ देने का वही आग्रह करना शुरू किया। सनातन गोस्वामी ने उसके चरण पकड़कर अपना सिर उन पर रख दिया और लगे आर्त भरे स्वर में कहने लगे-

“प्रभु, अब छल न करो ! स्वरूप में प्रकट होकर बताओ मैं क्या करूँ I गिरिराज मेरे प्राण हैं, गिरिराज परिक्रमा मेरे प्राणों की संजीवनी है, प्राण रहते इसे कैसे छोड़ दूं?”

भक्त-वत्सल प्रभु सनातन गोस्वामी की निष्ठा देखकर प्रसन्न हुए, पर परिक्रमा में उनका कष्ट देखकर वे दु:खी हुए बिना भी नहीं रह सकते थे । उन्हें भक्त का कष्ट दूर करना था, उसके नियम की रक्षा भी करनी थी और इसका उपाय करने में देर भी क्या करनी थी?

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सनातन गोस्वामी ने जैसे ही अपनी बात कह चरणों से सिर उठाकर उनकी ओर देखा उत्तर के लिए, उस बालक की जगह मदनगोपाल खड़े थे । वे अपना दाहिना चरण एक गिरिराज शिला पर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मधुर स्मित थी, नेत्रों में करुणा झलक रही थी वे कह रहे थे-

सनातन ! तुम्हारा कष्ट मुझसे नहीं देखा जाता, तुम गिरिराज परिक्रमा का अपना नियम नहीं छोड़ना चाहते तो इस गिरिराज शिला की परिक्रमा कर लिया करो. इस पर मेरा चरण-चिन्ह अंकित है I इसकी परिक्रमा करने से तुम्हारी गिरिराज परिक्रमा हो जाया करेगी I

इतना कह मदनगोपाल अन्तर्धान हो गये, सनातन गोस्वामी मदनगोपाल चरणान्कित उस शिला को भक्तिपूर्वक सिर पर रखकर अपनी कुटिया में गये । उसका अभिषेक किया और नित्य उसकी परिक्रमा करने लगे, उस शिला में श्री कृष्ण जी का चरणचिन्ह, गाय के खुर का चिह्न, एवं बंशी का चिह्न अंकित है वह शिला वृन्दावन में श्रीराधा दामोदर के मन्दिर में विद्यमान हैं । Please read also-कैकेयी निंदा की पात्र है या वंदना की आइये जानें

ऐसी मान्यता है कि राधा दामोदर मंदिर की चार परिक्रमा लगाने पर गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा का फल मिल जाता है । आज भी कार्तिक सेवा में श्रद्धालु बड़े भाव से मंदिर की परिक्रमा करते है ।

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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी