सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण नवाँ अध्याय

सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण नवाँ अध्याय

You are currently viewing सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण नवाँ अध्याय

सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण नवाँ अध्याय

सुन्दरकाण्ड की संक्षिप्त कथा-अग्निपुराण नारदजी कहते हैं – सम्पाती की बात सुनकर हनुमान और अंगद आदि वानरों ने समुंद्र की ओर देखा। फिर वह कहने लगे, कौन समुंद्र को लांघकर समस्त वानरों को जीवन-दान देगा? वानरों की जीवन-रक्षा और श्रीरामचंद्रजी के कार्य की प्रकृष्टय सिद्धि के लिए पवन कुमार हनुमानजी सौ योजन विस्तृत समुंद्र को लांघ गए।

लाघंते समय अबलम्बन देने के लिए समुंद्र से मैनाक पर्वत उठा। हनुमान जी ने दृष्टि मात्र से उसका सत्कार किया। फिर (छायाग्राहणी) सिंहिकाने सिर उठाया। (वह उन्हें अपना ग्रास बनाना चाहती थी इसलिए) हनुमान जी ने उसे मार गिराया। समुंद्र के पास जाकर उन्होंने लंकापुरी देखी।

राक्षसों के घरों में खोज की, रावण के अंत:पुरम में तथा कुंभ, कुंभकरण, विभीषण, इंद्रजीत तथा अन्य राक्षसों के ग्रहों में जा-जाकर तलाश की। मद्यपान आदि स्थानों पर भी चक्कर लगाया। किंतु कहीं भी सीता उनकी दृष्टि में नहीं पड़ीं। अब वे चिंता में पड़े। Please read-कभी राम बनके कभी श्याम बनके हिंदी लिरिक्स

अंत में जब अशोक वाटिका की ओर गए तो वहां देखा वहां शिंशपा-वृक्ष के नीचे सीताजी उन्हें बैठे दिखाई दी। वहां राक्षसियां उनकी रखवाली कर रही थी। हनुमानजी ने शिंशपा-वृक्ष पर चढ़कर देखा। रावण सीताजी से कह रहा था ‘तू मेरी स्त्री हो जा’। किंतु वे स्पष्ट शब्दों में ‘ना’ कर रही थी। वहां बैठी बहुत सी राक्षसियां भी यही कहती थी, तू रावण की स्त्री।

जब रावण चला गया तो, हनुमान जी ने इस प्रकार कहना आरंभ किया। अयोध्या में दशरथ नाम वाले एक राजा थे। उनके दो पुत्र राम और लक्ष्मण वनवास के लिए गए वे दोनों भाई श्रेष्ठ पुरुष हैं। उनमें श्रीरामचंद्रजी की पत्नी जनककुमारी सीता तुम्हीं हो। रावण तुम्हें बलपूर्वक हर ले गया है।

श्रीरामचंद्रजी इस समय वानरराज सुग्रीव के मित्र हो गए हैं। उन्होंने तुम्हारी खोज करने के लिए ही मुझे भेजा है। पहचान के लिए गूढ़ संदेश के साथ श्रीरामचंद्रजी ने अंगूठी दी है उनकी दी हुई यह अंगूठी ले लो। उन्होंने वृक्ष पर बैठे हुए हनुमानजी को देखा। फिर हनुमानजी से वृक्ष से उतर कर उनके सामने आ बैठे। तब सीता ने उनसे कहा- यदि रघुनाथजी जीवित है। तो वह मुझे यहां से ले क्यों नहीं जाते?

इस प्रकार शंका करती हुई सीताजी ने हनुमानजी ने इस प्रकार कहा- देवी सीते ! तुम यहां हो यह बात श्रीरामचंद्रजी नहीं जानते। मुझे यह समाचार जान लेने के पश्चात सेनासहित राक्षस रावण को मारकर वे तुम्हें अवश्य ले जाएंगे। तुम चिंता ना करो, मुझे कोई अपनी पहचान दो। Please Read-मेरी विनती यही है राधा रानी कृपा बरसाए रखना

तब सीताजी ने हनुमान जी को अपनी चूड़ामणि उतार कर दे दी और कहा अब ऐसा उपाय करो जिससे श्री रघुनाथजी शीघ्र आकर मुझे यहां से ले चलें। उन्हें कोए की आंख नष्ट कर देने वाली घटना का स्मरण दिलाना। (और आज यहीं रहो) कल सवेरे चले जाना। तुम मेरा शोक दूर करने वाले हो।

तुम्हारे आने से मेरा दु:ख बहुत कम हो गया है। चूड़ामणि और काक वाली कथा को पहचान के रूप में लेकर हनुमान जी ने कहा- कल्याणी ! तुम्हारे पतिदेव अब तुम्हें शीघ्र ही ले जाएंगे। अथवा यदि तुम्हें चलने की जल्दी हो, तो मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं आज ही तुम्हें श्री राम और सुग्रीव के दर्शन कर आऊंगा।

सीता बोलीं- नहीं श्रीरघुनाथजी ही आकर मुझे ले जायँ। तदन्तर हनुमानजी ने रावण से मिलने की युक्ति सोच निकाली। उन्होंने राक्षसों को मार कर अशोक वाटिका को उजाड़ डाला। फिर दांत और नख आदि आयुधों से वहां आए हुए रावण के समस्त सेवकों को मारकर सात मंत्रीकुमारों और रावण पुत्र अक्षय कुमार को भी यमलोक पहुंचा दिया। Please Read-हरे राम हरे राम, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कीर्तन

तत्पश्चात इंद्रजीत ने आकर उन्हें नागपाश से बांध लिया और उस वानर को रावण के पास ले जाकर उससे मिलाया। उस समय रावण ने पूछा – ‘तू कौन है’। तब हनुमानजी ने रावण को उत्तर दिया। मैं श्रीरामचंद्रजी का दूत हूँ। तुम सीता जी को श्रीरघुनाथजी की सेवा में लौटा दो।

अन्यथा लंकानिवासी समस्त राक्षसों के साथ तुम्हें श्रीराम के बाणों से घायल होकर निश्चय ही मरना पड़ेगा। यह सुनकर रावण हनुमानजी को मारने के लिए उद्धत हो गया। किंतु विभीषण ने उसे रोक दिया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगा दी पूछ जल उठी।

यह देख पवनपुत्र हनुमानजी ने राक्षसों की पूरी लंका को जला डाला और सीता जी का पुनः दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया। फिर समुंद्र के पार आकर अंगद आदि से कहा – मैंने सीताजी का दर्शन कर लिया है। तत्पश्चात अंगद आदि के साथ सुग्रीव के मधुबन में आकर, दधिमुख आदि राक्षसों को परास्त करके, मधुपान करने के अनंतर वे सब लोग श्रीरामचंद्रजी के पास आए Please Read- श्याम तेरे काम बड़े अचरज भरे, कृष्ण गोपाल गोविंद माधव हरे I

और बोले -‘सीताजी का दर्शन हो गया है। श्रीरामचंद्रजी ने भी अत्यंत प्रसन्न होकर हनुमानजी से पूछा-

श्रीरामचंद्र बोले- कपिवर ! तुम्हें सीता का दर्शन कैसे प्राप्त हुआ? उसने मेरे लिए क्या संदेश दिया है? मैं विरह की आग में जल रहा हूं। तुम मुझे सीताजी की अमृतमयी कथा सुना कर मेरा संताप शांत करो।

नारदजी कहते हैं- यह सुनकर हनुमान जी ने रघुनाथजी से कहा – ‘भगवन’ मैं समुंद्र लाँघ कर लंका में गया था। वहां सीताजी का दर्शन करके, लंकापुरी को जलाकर यहां आ रहा हूं। यह सीताजी की दी हुई चूड़ामणि लीजिए। आप शोक ना करें। रावण का वध करने के पश्चात निश्चय ही आपको सीताजी की प्राप्ति होगी।

श्रीरामचंद्र जी उस मणि को हाथ में लेकर ले, विरह से व्याकुल हो रोने लगे और बोले – ‘इस मणि को देखकर ऐसा जान पड़ता है, मानो मैंने सीता को ही देख लिया। अब मुझे सीता के पास ले चलो; मैं उसके बिना जीवित नहीं रह सकता है। ‘ उस समय सुग्रीवादि ने श्रीरामचंद्रजी को समझा-बुझाकर शांत किया। Please Read- पत्थर की राधा प्यारी पत्थर के कृष्ण मुरारी लिरिक्स

तदन्तर रघुनाथ जी समुद्र के तट पर गए। वहां उनसे विभीषण आकर मिले। विभीषण के भाई दुरात्मा रावण ने उनका तिरस्कार किया था। विभीषण ने इतना ही कहा था कि ‘भैया’ ! आप सीताको श्रीरामचंद्रजी की सेवा में समर्पित कर दीजिए। इसी अपराध के कारण उसने इन्हें ठुकरा दिया था। अब वे असहाय थे।

श्री रामचंद्र जी ने बिभीषण को अपना मित्र बनाया और लंका के राजपद पर अभिषिक्त कर दिया। उसके बाद श्रीराम ने समुद्र से लंका जाने के लिए रास्ता मांगा। जब उसने मार्ग नहीं दिया तो उन्होंने बाणों से उसे बींध डाला। अब समुंद्र भयभीत होकर श्री रामचंद्रजी के पास आकर बोला- ‘भगवन’ ! नल के द्वारा मेरे ऊपर पुल बँधाकर आप लंका में जाइए।

पूर्वकाल में आप ही ने मुझे गहरा बनाया था। यह सुनकर श्रीरामचंद्रजी ने नल के द्वारा वृक्ष और शिलाखण्डों से एक पुल बंधवाया और उसी से वानरों सहित समुंद्र के पार गए। वही से सुवेल पर्वत पर पड़ाव डाल कर वहीं से लंकापुरी का निरीक्षण किया।। Please Read-छोटी सी किशोरी मेरे अंगना में डोले रे



Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी