सुंदरकांड रामायण के सभी कांडों से क्यों अलग है।

सुंदरकांड रामायण के सभी कांडों से क्यों अलग है।

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सुंदरकांड रामायण के सभी कांडों से क्यों अलग है।

सुंदरकांड रामायण के सभी कांडों से क्यों अलग है। : रामायण में अनेक कांड हैं। इनमें बाल्यकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, उत्तरकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड आदि। लेकिन हर एक कांड का अपना महत्व है। सुन्दर कांड के बारे में बात करें तो यह थोड़ा इन सभी कांडों से अलग है। सुंदरकांड नामकरण किए जाने की विशेषताओं का रहस्य विरले ही समझ पाते हैं। यह भी पढ़ें : तुम दिखते नहीं हो फिर भी हरि एहसास तुम्हारा होता है

विशेषकर वे लोग जो नित्य प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करते हैं वे इससे भली-भांति जान सकते हैं। “रामायण जनमनोहरमादिकाव्यम” रामायण जन जन को प्रिय है यह आदिकाव्य है जिसके सभी पात्र और उनकी कथायें सुंदर है इसलिए काण्ड का नाम सुंदरकाण्ड रखा गया। रामायण सबके मन में बसी होने से मनोहर है ओर सुंदरकाण्ड अत्यंत मनोहर और सर्वश्रेष्ठ है।

सर्वश्रेष्ठ बतलाते हुये कहा है कि –

सुंदरे सुंदरों राम: सुंदरे सुंदरी कथा।
सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम।

सुंदरकाण्ड में राम सुंदर है, सुंदर की कथाएँ सुंदर हैं, सुंदर में सीता सुंदरी है , सुंदर में क्या सुंदर नहीं है? सुंदर में राम की कथा नहीं है, भक्त हनुमान की कथा और सीता की व्यथा हृदय को द्रवित कर देती है, यही सुंदरतम है, सुंदर काण्ड के दो प्रमुख और प्रधान चरित्र है सीता ओर हनुमान। यह भी पढ़ें : मेरा जी करता है श्याम के भजनों में खो जाऊं लिरिक्स

हनुमान तो भक्त हैं ओर सीता शक्ति हैं और राम शक्तिमान। श्रीराम सीता अभिन्न हैं उन्हे प्रथक करके नही देखा गया है, क्योंकि सीता के हृदय में राम बसे हैं और ऐसा कोई पल नहीं आया। जब सीता ने राम को विस्मृत किया हो तथा हनुमान ने जो भी पराक्रम दिखाये। उनमें कही आभास नही होने दिया की वे उनके द्वारा किए गए है।

अहंकाररहित हनुमान ने जो भी दुर्गम, दुर्जेय वीरोचित कार्य किए उस सभी कार्य का श्रेय उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को दिया है, यही सुंदर कथा है, जो सुंदरकाण्ड की शोभा बढ़ाती है। सुंदरकांड में हनुमान जी के बारे में बड़ा ही सुंदर वर्णन है। जब जामवंत हनुमान जी को उनकी शक्तियों के बारे में बताते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने सुंदर काण्ड की पहली ही चौपाई की शुरुआत सुंदर वचनों से की है कि –

जामवंत के वचन सुहाए, सुनि हुनुमंत हृदय अति भाए।

वे हनुमान को अपने विस्मृत हो चुके पराक्रम की याद कराने के बाद उन्हें अपने बल का बखान करते हैं जो एक ऋषि के श्राप से वे भूल चुके थे। हनुमान जी को स्मरण आता है तो उसकी परीक्षा के लिए वहाँ एक पर्वत का प्रसंग गोस्वामी जी रखते है कि “सिंधु तीर एक भूधर सुंदर” में सुंदर शब्द का पहली बार उल्लेख किया और हनुमान जी जैसे ही उस पर्वत पर पाँव रखकर कूदते है तो वह पर्वत पाताल में धस जाता है।

सुंदरकाण्ड में सुदर क्या है हनुमान का स्वरूप जो भीमाकर कर लिया है जो अगाध गगनाकार सागर को लांघने के लिए है। सुंदरकांड में सीता जी के बारे में भी बड़ा ही भावपूर्ण वर्णन किया गया है। “सुंदरे सुंदरी सीता“ के विषय में सुंदरकाण्ड, सीता के प्रधान चरित्र को प्रगट करता है यह अलग बात है कि हम अब तक हम भक्त हनुमान और अन्य प्रसंगो के चिंतन में खोये रहे। यह भी पढ़ें : मानव अपने सपन संजोए विधिना अपनी चाल चले

सम्पूर्ण नारी जगत को गौरवान्वित करने वाली सीता अपने नाम, रूप, गुण और चरित्र में सती के सतीत्व का तेज लिए हुए सर्वव्यापिनी चैतन्यस्वरूप त्याग की मूर्ति है। श्रीराम के निकट रहने के कारण वे जगदानन्दकारिणी है जो कुछ देहविशिष्ट है सबकी उत्पत्ति, स्थिति और संहारणी सीता देवी ही कही गई है।

इसलिए कहा गया है कि सीता ही प्रणय होने के कारण प्रकृति है। अध्यात्म रामायण में उल्लेख किया गया है कि “एको विभासि त्वं माया बहुरुपया। तथा – योगमायापि सीतेति” लोकविमोहिनी हरिनेत्रकृतालया” सीता जी ने श्रीरामचन्द्र जी के अभिप्रायानुसार सीता जी राम के एक सर्वश्रेष्ठ भक्त को ज्ञान का पात्र जानकार एक वार तत्वज्ञान प्रदान किया था। यह भी पढ़ें : भागवत में राधाजी का जिक्र क्यों नहीं आया?

सीता जी कहती है कि राम को परब्रम्ह सच्चिदानंद ही जानना चाहिए। एकमात्र सत्यवस्तु श्रीराम ही बहुरूपिणी माया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे है ओर सीता ही योगमाया है। भगवती सीता जी कि अपार महिमा है। वेद शास्त्र पुराण इतिहास तथा धर्म ग्रंथो में इनकी अनंत लीलाओं का शुभ वर्णन किया गया है। ये भगवान श्रीराम कि प्राणप्रिया आघ्याशक्ति है।


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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी