विश्व के सभी स्थानों में श्री धाम वृन्दावन सर्वोच्च क्यों है

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विश्व के सभी स्थानों में श्री धाम वृन्दावन सर्वोच्च क्यों है :- वृन्दावन का आध्यात्म अर्थ है – वृन्दाया तुलस्या वनं वृन्दावनं

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तुलसी का विशेष वन होने के कारण इसे वृन्दावन कहते हैं। वृन्दावन ब्रज का हृदय है, जहाँ प्रिया-प्रियतम ने अपनी दिव्य लीलायें की हैं। इस दिव्य भूमि की महिमा बड़े-बड़े तपस्वी भी नहीं समझ पाते। ब्रह्मा जी का ज्ञान भी यहाँ के प्रेम के आगे फ़ीका पड़ जाता है।

वृन्दावन रसिकों की राजधानी है। यहाँ के राजा श्याम सुन्दर और महारानी श्री राधिका जी हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रस मय है। ब्रज धाम सभी धामों से ऊपर है और सभी तीर्थों से श्रेष्ठ है श्री वृन्दावन धाम।

श्री वृन्दावन धाम की महिमा का बखान करता एक प्रसंग:

भगवान नारायण ने प्रयाग को तीर्थों का राजा बना दिया। अतः सभी तीर्थ प्रयागराज को कर देने आते थे। एक बार नारद जी ने प्रयागराज से पूछा ! क्या वृन्दावन भी आपको कर देने आता है? तीर्थराज ने नकारात्मक उत्तर दिया। तो नारद जी बोले ! तो फिर आप तीर्थराज कैसे हुए। इस बात से दुखी होकर तीर्थराज भगवान के पास पहुँचे। भगवान ने प्रयागराज के आने का कारण पूछा।

तीर्थराज बोले प्रभु ! आपने मुझे सभी तीर्थों का राजा बनाया है। सभी तीर्थ मुझे कर देने आते हैं, लेकिन श्री वृन्दावन कभी कर देने नहीं आये। अतः मेरा तीर्थराज होना अनुचित है। भगवान ने प्रयाग राज से कहा ! तीर्थराज मैंने तुम्हें सभी तीर्थों का राजा बनाया है।

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अपने निज गृह का नहीं। वृन्दावन मेरा घर है। यह मेरी प्रिया श्री किशोरी जी की विहार स्थली है। वहाँ की अधिपति तो वे ही हैं। मैं भी सदा वहीं निवास करता हूँ। वह तो आप से भी ऊपर है।

एक बार अयोध्या जाओ, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे ।
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार-बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे।
कोटि बार काशी, केदारनाथ रामेश्वर गया, जगन्नाथ चाहे जहाँ जाओगे।
होंगे प्रत्यक्ष जहाँ दर्शन श्याम श्यामा के, वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे।

कोई भी व्यक्ति अनुभव कर सकता है कि वृन्दावन की सीमा में प्रवेश करते ही एक अदृश्य भाव एक अदृश्य शक्ति हृदय स्थल के अन्दर प्रवेश करती है। और वृन्दावन की परिधि छोड़ते ही यह दूर हो जाती है। इसमें जो वास करता है, भगवान की गोदी में ही वास करता है। परन्तु श्री राधारानी की कृपा से ही यह गोदी प्राप्त होती है। “कृपयति यदि राधा बाधिता शेष बाधा”

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वृहद्गौतमीयतन्त्र में भगवान ने अपने श्री मुख से यहाँ तक कहा है कि यह रमणीय वृन्दावन मेरा गोलोक धाम ही है। “इदं वृन्दावनं रम्यं मम धामैव केवलम” ! तो ब्रज की महारानी श्री राधारानी हम पर ऐसी कृपा करें । कि हमें श्रीवृन्दावन धाम का वास मिले। यदि जीवन में कुछ समय के लिए समय मिले तो श्री धाम वृन्दावन में वास अवश्य करें। – Brij Maharaj Dileep Tiwari

श्री दामोदराष्टकं स्तोत्र हिन्दी में


Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी