ब्रज के 24 उपवन कौन-कौन से हैं। :- ब्रज के पुराण प्रसिद्ध 24 उपवनों
1. अराट (अरिष्टवन | 2. सतोहा (शांतनुकुंड) | 3. गोवर्धन | 4. बरसाना | 5. परमदरा |
6. नंदगांव | 7. संकेत | 8. मानसरोवर | 9. शेषशायी | 10. बेलवन |
11. गोकुल | 12. गोपालपुर | 13. परासोली | 14. आन्यौर | 15. आदिव दरी |
16. विलासगढ़ | 17. पिसायौ | 18. अंजनखोर | 19. करहला | 20. कोकिला वन |
21. दघिवन (दहगांव) | 22. रावल | 23. वच्छवन | 24. कौरव वन |
ब्रज के वन :
उपरोक्त 12 वन और 24 उपवनों के अतिरिक्त 12 प्रतिवन और 12 तपोवन तथा विष्णु पुराण के आधार पर 12 अधिवन के नाम उल्लिखित है।
इनके अतिरिक्त आदिपुराण में 12 मोक्षवन, भविष्य पुराण में 12 कामवन,
स्कंद पुराण में 12 अर्थवन, स्मृति सार में 12 धर्मवन और विष्णु पुराण में 12 सिद्धवन के नाम लिखे हैं।
सभी वनों के अधिपति देवताओं का नाम उल्लेख करते हुए उनके ध्यान मत्र भी उल्लखित हैं। भटटजी के मतानुसार इन समस्त वनों में से 92 यमुना नदी के दाहिने ओर तथा 42 बांयी ओर हैं।
वनों के अवशेष यद्यपि प्राचीन वनों में से अधिकांश कट गये हैं और उनके स्थान पर बस्तियां बस गई हैं। Please Read : महाभारत की कहानी कुछ और ही होती यदि ये श्राप न मिले होते
तथापि उनके अवशेषों के रुप में कुछ वनखंड और कदम खंडियां विद्यमान हैं, जो ब्रज के प्राचीन वनों की स्मृति को बनाये हुए हैं।वर्तमान समय वृन्दावन में निधिवन और सेवाकुंज दो ऐसे स्थल हैं। जिन्हें प्राचीन वृन्दावन के अवशेष कहा जा सकता है।
ये संरक्षित वनखंडों के रुप में वर्तमान वृन्दावन नगर के प्रायः मध्य में स्थित हैं। Please Read : देना हो तो दीजिये जनम जनम का साथ हिंदी लिरिक्स
इनमें सघन लता-कुंज विधमान हैं। जिनमें बंदर-मोर तथा अन्य पशु-पक्षियों का स्थाई निवास है। इन स्थलों में प्रवेश करते ही प्राचीन वृन्दावन की झाँकी मिलती है। निधिवन यह स्वामी हरिदास जी पावन स्थल है। स्वामी जी ने वृन्दावन आने पर यहाँ जीवन पर्यन्त निवास किया और इस स्थान पर उनका तिरोभाव भी हुआ था। Please Read : प्रभू ने भक्तमाली जी को लड्डू गोपाल के रूप में दर्शन दिए
मुगल सम्राट अकबर ने तानसेन के साथ इसी स्थान पर स्वामी जी के दर्शन किये थे और उनके दिव्य संगीत का रसास्वादन किया था।स्वामी जी के उपरान्त उनकी शिष्य परम्परा के आचार्य ललित किशोरी जी तक इसी स्थल में निवास करते थे।
इस प्रकार यह हरिदासी संम्प्रदाय का प्रधान स्थान बन गया। यहाँ पर श्री विहारी जी का प्राकट्य स्थल, रंगमहल और स्वामी जी सहित अनेक आचार्यों की समाधियां हैं।
सेवाकुंज : –
यह श्री हित हरिवंश जी का पुण्य स्थल है, हित हरिवंश जी ने वृन्दावन आने पर अपने उपास्य श्री राधावल्लभ जी का प्रथम पाटोत्सव इसी स्थान पर स. 1591 में किया था। बाद में मन्दिर बन जाने पर उन्हें वहाँ विराजमान किया गया था। Please Read : मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है
इस समय इसके बीचों- बीच श्रीजी का छोटा सा संगमर का मन्दिर है। जिसमें नाम सेवा होती है, इसके निकट ललिता कुंड है। भक्तों का विश्वास है ! कि इस स्थान पर अब भी श्री राधा-कृष्ण का रास विलास होता है। अत रात्रि को यहाँ कोई नहीं रहता है।
पुहकरदास वैश्य कांघला निवासी ने स.1660 में यहाँ श्रीजी के शैया-मंदिर का निर्माण कराया था और अयोध्या नरेश प्रतापनारायण सिंह की छोटी रानी ने स. 1962 में इसके चारों ओर पक्की दीवाल निर्मित कराई।
कदंबखंडी : –
ब्रज में संरक्षित वनखंडों के रुप में कुछ कदंब खंडियाँ थी। जहाँ बहुत बड़ी संख्या में कदंब के वृक्ष लगाये गये थे। उन रमणीक और सुरभित उपवनों के कतिपय महात्माओं का निवास था। कवि जगतनंद ने अपने काल की चार कदंबखंडियों का विवरण प्रस्तुत किया है। Please Read Also : श्याम चूड़ी बेचने आया हिंदी लिरिक्स
वे सुनहरा गांव की कदंबखंडी, गिरिराज के पास जतीपुरा में गोविन्द स्वामी की कदंबखंडी, जलविहार (मानसरोवर) की कदंबखंडी और नंदगांव (उद्धवक्यार ) की कदंंबखडी थी। इनके अतिरिक्त जो और हैं, उनके नाम कुमुदवन, वहुलावन, पेंठा, श्याम ढाक (गोवर्धन) पिसाया, दोमिलवन कोटवन और करलहा नामक वनखंडियाँ हैं।
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी