गोवर्धन परिक्रमा और परिक्रमा मार्ग के दार्शनिक स्थान

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गोवर्धन परिक्रमा और परिक्रमा मार्ग के दार्शनिक स्थान : देश विदेश से करोड़ों श्रद्धालु श्री गिरिराज जी यानी गोवर्धन की परिक्रमा के लिए श्रद्धा-भक्ति भाव से गोवर्धन परिक्रमा के लिए वृंदावन आते हैं।

सभी गोवर्धन वासी श्रीकृष्ण की लीलाओं से भली भांति परिचित हैं पर आज हम आपको श्री कृष्ण की किसी लीलाओं में से एक गोवर्धन परिक्रमा के साक्षात् दर्शन कराने जा रहे हैं। वही गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, जिसके आस पास का क्षेत्र ब्रज-भूमि कहलाता है, वह गोवर्धन पर्वत जिसे श्री गिरिराज जी (Shri Girraj ji Maharaj) के नाम से भी जाना जाता है।

श्रद्धा भाव का यह आलम है कि परिक्रमा साल के ३६५ दिन चलता रहती है चाहे कितनी चाहे धुप हो, चाहे ठण्ड हो, चाहे घनघोर बरसात हो परिक्रामर्थी (परिक्रमा करने वाले) किसी बाधा से नहीं घबराते ! वैसे तो गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा सात कोस यानि 21 किमी० की होती है।

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के बारे में कहा जाता है की चारो धाम की यात्रा कर लो या फिर गिरिराज पर्वत की परिक्रमा दोनों बराबर मानी जाती है। जो मानव चाहता है कि हमें राधा कृष्ण के प्रेम की भक्ति मिले और उनके चरणों में की धूल मिले तो वृन्दावन में गिरिराज जी की अवश्य करनी चाहिए। यह भी पढ़ेंलाडली अद्भुत नजारा तेरे बरसाने में है हिंदी लिरिक्स

खास तौर पर गोवर्धन पूजा और परिक्रमा जरूर करनी चाहिए तभी मानव तन को श्री कृष्ण के और राधा रानी की भक्ति प्राप्त होती है। गोवर्धन की परिक्रमा मार्ग के हर छोटे और बड़े पत्थर में श्री कृष्ण का वास है। ये पत्थर इतने पावन है कि ब्रज में हर जगह इन पवित्र पत्थरों की पूजा होती है।

श्री कृष्ण द्वारा अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाये गए इस पर्वत पर लोगों का इतना विश्वास है कि यहाँ का बच्चा-बच्चा आपको पत्थरों पर चरणों के चिन्ह, गौ-माता और राधा-कृष्ण की छवि तक दिखा देंगे। गोवर्धन की परिक्रमा मार्ग में भगवान श्री कृष्ण के और राधा रानी के चरणों के निशान के कई रहस्मयी चिन्ह मौजूद हैं। जिनके दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है।

श्री गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले दार्शनिक स्थान :

आपको परिक्रमा मार्ग में कई स्थान मिलेंगे जिनमे दान घाटी, मानसी गंगा, अभय चक्रेस्वर मंदिर, सुरभी कुंड, कुशुम सरोवर, पूंछरी का लौठा, जतीपुरा, राधा कुंड , गोविन्द कुंड, संकर्षण कुंड, और गौरीकुंड इन सब स्थानों के अलग-अलग महत्त्व है।

८४ कोस के ब्रज-मंडल में २५० सरोवर मौजूद है जो राधा-कृष्ण की लीलाओं से सम्बंधित हैं परिक्रमा मार्ग के रास्ते में कई सरोवर में बने मंदिरो के अलोकिक दर्शन होंगे, जिनमे सुरभी कुंड, संकर्षण कुंड, गौरीकुंड, गोविंद कुंड, राधा कुंड, उद्धव कुंड, ललिता कुंड आदि प्रमुख स्थान है। यह भी पढ़ेंतेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आई हूँ

१. दानघाटी :

दान घाटी वह स्थान है जहाँ से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का शुभारंभ होता है। यहाँ गिरिराज जी का परिक्रमा से पूर्व दूध से अभिषेक किये जाने की परम्परा है। कहते हैं इसी जगह से होते हुए ब्रज की समस्त गोपियाँ राजा कंस को माखन कर चुकाने जाया करती थीं। दान घाटी में श्यामसुंदर अपने बाल सखाओं के साथ गोपियों से दूध दही का दान लिया करते थे।

कृष्ण लीलाओं में ये जगह अत्यंत सुंदर है। इस मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान कृष्ण अपनी कनिष्ट ऊँगली में पर्वत को उठाये हुए है। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठ ऊँगली में ७ दिन ७ बर्ष की आयु और ७ रात तक गोवर्धन पर्वत को उठाया था।

बृज की गोपियों से दान केवल इसी भाव से लिया जाता था की अगर कंस के यहाँ सारा दूध दही गोपियाँ ले जाएँगी तो उसके सैनिक थोड़ा ज्यादा बलशाली हो जायेंगे और ब्रज के लोग कमजोर रहेंगे तो जब युद्ध का समय आएगा तो ब्रज-मंडल के सैनिक कमजोर पड़ जायेंगे। ये भी पढें-श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि भजन

एक समय था जब दानघाटी के बारे में कोई नहीं जानता था पर आज यहाँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वैभव है।दान लिए जाने की इसी वजह से इसे दानघाटी के नाम से जाना जाता है। दानकेलि कौमुदी ग्रन्थ में तो इस सुन्दर लीला का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। क्योंकि यहाँ कान्हा अपने बालरूप में आते थे इसलिए इस मंदिर में प्रभु को भोग स्वरुप माखन-मिश्री और दूध दिया जाता है।

२. मानसी गंगा गोवर्धन :

हिन्दूओं के सभी धार्मिक तीर्थो का जल मानसी गंगा में मौजूद है जहाँ श्री राधा रानी संग भगवान श्री कृष्ण नौका विहार का आनंद लेते थे। तभी से यहाँ जो भी भक्त गोवर्धन की परिक्रमा करने एवं घूमने आते है इस मानसी गंगा में नौका विहार का लुप्त जरूर उठाते है। यह भी पढ़ेंछोटी सी किशोरी मेरे हिंदी भजन लिरिक्स

गोवर्धन पर्वत से ३ किमी० की दूरी पर स्थित मानसी गंगा के बारे ऐसा कहा जाता है की एक बार कंस ने बत्सासुर नाम के दैत्य को भगवान कृष्ण का बद्ध करने के लिए भेजा था। तब वो असुर बछड़े के रूप में कृष्ण की गयाों में शामिल हो गया । और कन्हैया ने उसे पहचान कर मार डाला था। यह भी पढ़ेंलाडली अद्भुत नजारा तेरे बरसाने में है हिंदी लिरिक्स

तब श्री राधा ने उनसे कहा की आपने गौ हत्या की है आपको पापों से मुक्ति के लिए तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। तब कृष्ण ने अपने बंसी से एक कुंड का निर्माण किये और सभी तीर्थो से प्राथना की, कि सब के जल इस कुंड में सम्मोहित हो जाये । इस कुंड में स्नान करने से भगवान श्री कृष्ण गौ हत्या से मुक्त हुए थे। तब से इस कुंड में सभी तीर्थो का अंश जल मौजूद है।

३. अभय चक्रेश्वर मंदिर :

अभय चक्रेश्वर मंदिर एक शिव मंदिर है जिसमें चक्र के आकर के ५ शिवलिंग हैं। पुराणों में इस मंदिर का वर्णन मिलता है। भगवान शिव और कृष्ण की आध्यत्मिक अलोकिक भक्ति भावनाओं को शब्दों में कैसे वर्णन कर सकते है। माना जाता है कि जब श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने कनिष्ठा उंगली में उठा रखे थे। यह भी पढ़ेंतेरे रंग में रंगा हर जमाना मिले मैं जहां भी

तब उनके पैर का वजन इतना भारी था की उनका पैर पृथ्वी में भीतर धसने लगा जिसे गड्ढा हो गया था जिसकी वजह से वहां भारी मात्रा में पानी इकट्ठा हो गया तब भगवान शिवजी पानी को बाहर हटाने के लिए चक्र के रूप में प्रकट हुए।

४. कुशुम सरोवर :

कुशुम सरोवर गोवर्धन परिक्रमा के मार्ग में स्थित है। कुशुम सरोवर जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ खूबसूरत लीलायें की थीं। कुशुम सरोवर राधा कुंड से २ और गोवर्धन से ५ किमी० की दूरी पर स्थित पांच हजार बर्ष पुरानी जगह है। इस स्थान के बारे पौराणिक कथाओं में काफी सुन्दर वर्णन मिलता है।

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यह वो पवित्र स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण और राधारानी का छुप -छुप कर मिलन हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस जगह का नाम कुशुम वन होता था। उस समय पर यहाँ फूलों का बगीचा था और राधा जी पुष्प तोड़ने के लिए बरसाना से यहाँ आया करती थी और उसी बहाने श्री कृष्ण से मिलन करती। यह भी पढ़ेंमेरी विनती यही है राधा रानी हिंदी भजन

कुशुम सरोवर के चारो तरफ बड़ी सुन्दर छत्रिया मौजूद है जो आज से लगभग ३५० बर्ष पुरानी है बताया जाता है कि इनका निर्माण राजा ज्वार सिंह के द्वारा १६७५ में करवाया गया था फिर बाद में मध्यप्रदेश ओरछा के राजा वीरसिंह जी ने जीर्णोद्धार किया।

५. सुरभी कुंड :

परिक्रमा मार्ग में एक खूबसूरत कुंडेश्वर है जो सुरभी कुंड के नाम से जाना जाता है यह वह स्थान है। सुरभी कुण्ड पर इन्द्र की प्रार्थना से सुरभि जी ने अपने स्तन के दूध से श्रीगोविन्द जी का अभिषेक किया था। इसके बाद श्रीकृष्ण की गोचारण लीला तथा विशेषत: श्रीराधा-कृष्ण युगल की निभृत निकुञ्जलीला का दर्शन करने के लोभ से वे श्रीकृष्ण की ब्रज लीला तक यहीं निवास करने लगीं। यह भी पढ़ेंकब आएगा मेरा सांवरिया हिंदी भजन लिरिक्स

सुरभि कुण्ड काम्यवन में गुफ़ा से आगे चलने पर परिक्रमा मार्ग में दाहिनी ओर स्थित है। यह कुण्ड निर्मल और मीठे जल से भरा हुआ है। महाराज वज्रनाभ ने इनकी स्मृति के लिए इस सुरभि कुण्ड की स्थापना की थी। यहाँ स्नान एवं आचमन करने से सारे पाप, अपराध दूर हो जाते हैं तथा ब्रज का प्रेम प्राप्त होता है।

६. राधा कुंड :

राधा कुंड निर्माण राधा रानी ने अपने कंगन से किया था यह वह स्थान है जो समस्त ब्रह्मांड और सम्पूर्ण सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यही वह स्थान है जो श्री कृष्ण के अमृतमयी प्रेम को लालायित रहता है। पद्म पुराण में कहा गया है कि जिस प्रकार सभी गोपियों में श्री राधा श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं, उनकी उसी प्रकार राधाजी का प्रियकुण्ड भी उन्हें अत्यन्त प्रिय है।

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श्री रघुनाथदास गोस्वामी जी कहते हैं कि ब्रजमंडल की अन्य लीलास्थलियों की तो बात ही क्या, श्री वृन्दावन जो रसमयी रासस्थली के कारण परम सुरम्य है तथा श्रीमान गोवर्धन भी जो रसमयी रास और युगल की रहस्यमयी केलि–क्रीड़ा के स्थल हैं, ये दोनों भी श्रीमुकुन्द के प्राणों से भी अधिक प्रिय श्रीराधाकुण्ड की महिमा के अंश के अंश लेश मात्र भी बराबरी नहीं कर सकते। हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता भजन लिरिक्स

माना जाता है कि अहो अष्टमी के दिन जो श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करता है उसे श्री राधा रानी के भक्ति प्राप्त होती है। इसी कुंड के समीप स्थित श्याम कुंड के दर्शन कर सकते है। राधा कुंड और श्याम कुंड की अपनी-अपनी अलग विशेषताएं है श्याम कुंड को दूर से देखने पर जल सावरे रंग का जबकि राधा कुंड का सफ़ेद स्वक्छ रंग का दिखाई देता है।

७. जतीपुरा (गिरिराज इंद्रा मान भंग पूजा मुखारविंद) :

गावर्धन परिक्रमा अगले पड़ाव में दर्शनीय स्थल जतीपुरा हैं। जिसके बारे में मान्यता है की भगवान कृष्ण का मुख होने का यहाँ आभास होता है। क्योंकि परिक्रमा के दौरान इस मंदिर के प्रसाद का बहुत महत्व बताया गया है।

यहाँ पर आपको भगवान गिरिराज जी के मुखारविन्दु में श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के मुख के दर्शन होते है इसीलिए यहाँ पर छप्पन भोग लगाए जाने की परम्परा है।

८. पूंछरी का लौठा :

परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले पूंछरी का लौठा में परिक्रमा करना अनिवार्य कहा जाता है। क्योकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि हो जाती है की आप परिक्रमा लगा रहे हैं। पूंछरी गांव में परिक्रमा मार्ग पर श्रीलौठाजी का मन्दिर है।

श्री लौठा जी से सम्बन्धित एक कथा प्रचलित है की जब भगवान कृष्ण ब्रज को छोड़ कर द्वारिका जा रहे थे तब सभी ब्रज-बासी उन्हें पहुंचाने जा रहे थे उन्ही में एक उनका बाल सखा श्री लौठा जी जो काफी भावुक हो गए थे। श्रीकृष्ण ने द्वारका जाते समय लौठा जी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया।

इस पर लौठाजी बोले-हे! प्रिय मित्र मुझे ब्रज त्यागने की इच्छा नहीं हैं, परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख है, अत: तुम्हारे पुन: ब्रज आगमन होने तक मैं अन्न-जल छोड़कर प्राणों का त्याग यहीं कर दूंगा। जब तू यहाँ लौट आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा। यह भी पढ़ेंइक दिन वो भोले भंडारी बन कर हिंदी लिरिक्स

तब भगवान ने उन्हें वचन दिया की मै २ दिन बाद लौट कर आ जाऊंगा तभी से उनका ये सखा कृष्ण के लौटने के इंतज़ार में यहाँ विराजमान हो गए। श्रीकृष्ण ने कहा-सखा ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे। तभी से श्री लौठा जी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं !

‘धनि-धनि पूंछरी के लौठा। अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा।

श्री लौठा जी को विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहाँ लौटकर आवेंगे, क्योंकि श्रीकृष्ण जी स्वयं वचन दे गये हैं। इसलिये इस स्थान पर श्रीलौठा जी का मन्दिर प्रतिष्ठित है। इसके बारे में एक और भी मान्यता है की जब कृष्ण अपनी गायों को चराने यहाँ आया करते थे।

तो हनुमान जी बानर स्वरुप में उनके साथ खेला करते थे और कृष्ण ,हनुमान और उनकी गायें आपस में क्रीड़ायें करती थी तो उनका आपस में रिश्ता और भी अच्छा होता चला गया। तो भगवान श्री कृष्ण जी ने उनको एक बार कहा की कलयुग में जो भक्त गोवर्धन परिक्रमा करेगा उसके तुम शाक्षी रहोगे।

९. राधा कृष्ण चरण मंदिर :

परिक्रमा मार्ग के रास्ते में पड़ने बाले इस राधा कृष्ण चरण मंदिर में राधा रानी और श्री कृष्ण के चरणों के निशान के दर्शन मिलते है। जहाँ आप रुक कर पूजा अर्चना कर सकते है। यह भी पढ़ेंश्री कृष्णाष्टकम एवं कृपा कटाक्ष स्तोत्र

१०. गोविन्द कुंड :

चौरासी (८४) कोस परिक्रमा का यह पड़ाव गोविन्द कुंड ये वही स्थान है। जहाँ इंद्रा ने भगवान का ७ गंगा ७ समुद्र का जल लेकर श्री कृष्ण जी का अभिषेक किया था। यह भी पढ़ेंशिव स्तुति: आशुतोष शशाँक शेखर चंद्र मौली चिदंबरा

११. इंद्र कुंड :

इंद्र कुंड यह वो कुंड है जहां पर इंद्र देवता ने खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण की प्रार्थना की और उनका अभिषेक किया।

गोवर्धन परिक्रमा करने के नियम :

परिक्रमा प्राम्भ करने से पहले गोवर्धन परिक्रमा के नियम को जानना अति आवश्यक है :

  • गोवर्धन परिक्रमा आप जहां से प्रारंभ करें वहीं से आपको गोवर्धन परिक्रमा समाप्त करनी चाहिए, क्योंकि गोवर्धन परिक्रमा का फल तब ही प्राप्त होता है, जब आप उसे पूरा करते हैं।
  • गोवर्धन परिक्रमा करते समय प्रारंभ में कम से कम पांच और अंत में कम से कम एक दंडवत या साष्टांग प्रणाम अवश्य करें।
  • परिक्रमा शुरू करने से पहले परिक्रमा मार्ग के किसी भी एक मंदिर में पूजा करके ही आरम्भ करें।
  • परिक्रमा जहां से अपनी मर्जी वहां से कर सकते हैं ज्यादातर लोग तो परिक्रमा का शुभारंभ दानघाटी से करते हैं आपका जिस स्थान से मन हो वहां से कर सकते हैं।
  • गोवर्धन पर्वत में किसी भी पर्वत में ना चढ़े इससे भगवान के मान का खंडन होता है।
  • गोवर्धन के किसी भी कुंड में केवल पैर बस न धुले अर्थात स्नान कर सकते हैं लेकिन सिर्फ पैर नहीं धुलना चाहिए।
  • गोवर्धन परिक्रमा में पहने गए कपड़े साफ व शुद्ध होने चाहिए। गंदे कपड़े कभी भी पहनकर परिक्रमा न करें।
  • शास्त्रों के अनुसार तीर्थ स्थानों पर किए गए पुण्य कार्यों का फल हमें कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसलिए तीर्थ स्थान पर हमेशा पाप कर्म से बचना चाहिए।
  • गोवर्धन परिक्रमा तन और मन को स्वच्छ रखकर करें। क्योंकि पूजा हमेशा समर्पण भाव से की जाती है। इसलिए परिक्रमा करते समय मन से सभी विचार निकाल कर सिर्फ प्रभू श्री कृष्ण के नाम का ही जाप करें।
  • अगर आप विवाहित हैं तो परिक्रमा हमेशा पति या पत्नी के साथ ही करें और न ही मन में किसी और का भाव रखकर गोवर्धन परिक्रमा करें।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय हमेशा गोवर्धन पर्वत को अपने दाईं और ही रखें। क्योंकि परिक्रमा में जिस वस्तु की परिक्रमा की जाती है। उस वस्तु को दाईं और रखकर ही परिक्रमा की जाती है।
  • परिक्रमा करते करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लेटते समय, उठते समय या बैठते समय गिरिराज की और पीठ तथा पैर कभी भी न हो। यदि भूलवश ऐसा हो जाता है तो गिरिराज जी से इसके लिए क्षमा अवश्य मांगे।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही शौच आदि करें और इसके बाद जल से अपने हाथ और मुख को अच्छी तरह से धोएं।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय गाय, पौधों, जीव जंतु आदि को भूलकर भी न सताएं और न हीं कोई नुकसान पहुंचाए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए और न हीं किसी को अपशब्द या कटू वचन बोलने चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नंगे पैर की जाती है। परिक्रमा करते समय जूते, चप्पल न पहनें। अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो या फिर कोई छोटा बच्चा साथ में हो तो रबड़ की चप्पल या फिर कपड़े के जूते प्रयोग किए जा सकते हैं।
  • शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को तीर्थ स्थानों में सदा स्नान ,दान व जप आदि करना चाहिए। क्योंकि स्नान न करने पर रोग, दान न करने पर दरिद्रता और जप न करने पर मूकता का भागी बनना पड़ता है।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय अहिंसा धर्म का पालन करें। किसी भी जंतु को कोई नुकसान न हो इस प्रकार से परिक्रमा करें।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय यदि आप किसी स्थान पर रूकते हैं तो आपको दुबारा उसी स्थान से परिक्रमा प्रारंभ करनी चाहिए। जिस स्थान से परिक्रमा के लिए रूके थे।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कभी भी अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए। ऐसा करने से आप पाप के भागीदार बनते हैं। यदि किसी कारण से परिक्रमा अधूरी छोड़नी पड़े तो जहां से आप परिक्रमा अधूरी छोड़ रहे हों वहीं जमीन पर माथा टेककर भगवान गिरिराज जी से क्षमा याचना करके उन्हें प्रणाम करके ही परिक्रमा समाप्ती अनुमति लेनी चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा महिलाओं को पीरियड्स के दौरान नहीं करनी चाहिए। लेकिन परिक्रमा करते समय किसी महिला को मासिक धर्म आ जाए तो वह परिक्रमा अधूरी नहीं मानी जाती। ऐसे में वह महिला परिक्रमा कर सकती है।
  • यदि कोई व्यक्ति तनाव ग्रस्त है तो उसे तनाव का त्याग करके गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय लगातार भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार का धूम्रपान या कोई भी नशीली वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करने तथा पूरी करने का कोई निश्चित समय नही है। परिक्रमा दिन या रात में कभी भी प्रारंभ की जा सकती है। लेकिन आप जहां से परिक्रमा प्रारंभ करें आपको वहीं से परिक्रमा समाप्त करनी होगी।
  • परिक्रमा करते हुए मार्ग में सांसारिक वातावरण से दूर रहें किसी भी तरह की बातें ना करें बल्कि पूरी श्रद्धा भाव से राधे राधे बरसाने वाली राधे का जाप करते रहे।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के बाद कुछ लोग इसे खड़ी हुयी गाय का स्वरुप बताते है तो कुछ बैठी हुयी गाय बताते है आप ध्यान दे चाहे जिस भी स्वरुप में हो आपको पता होना चाहिए कि गोवर्धन यानी गाय की पूजा कर रहे हैं तो आप अपनी श्रद्धा भाव से गाय को मानिये और उसकी सेवा कीजिए। कृष्ण का स्वरूप मानकर विष्णु भक्त उनका सम्मान करते हैं और वह गिरिराज जी के ऊपर नहीं चढ़ते। इसलिए भूलकर भी गिरिराज जी के ऊपर नहीं चढ़ना चाहिए।
  • गिरिराज के ऊपर स्थित पवित्र कुंडों में पांव नहीं धोने चाहिए। आप इससे सशरीर स्नान कर सकते हैं। इससे आप पूजा या आचमन कर सकते हैं।
  • गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय साबून, तेल व शैम्पू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • परिक्रमा करते समय नाखून काटना, पलंग पर सोना, बाल आदि कटवाना वर्जित है।
  • परिक्रमा में दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम करते समय शरीर के आठ अंग दोनों भुजाएं,दोनों पैर, दोनों घूटने, सीना, मस्तक और नेत्र जमींन के संपर्क में होने चाहिए।

गोवर्धन परिक्रमा क्यों की जाती है –

गोवर्धन परिक्रमा से भक्तों को भगवान कृष्ण की विशेष कृपा मिलती हैं। साथ ही जीवन के परम लक्ष्य, परम शक्ति, इच्छा और भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के चरणों की धूल सदा बरसती रहती है। गोवर्धन की परिक्रमा करने से जीवन का परम लक्ष्य परम शक्ति, भगवत भक्ति की प्राप्ति भी सरलता से हो जाती है। यह भी पढ़ेंपत्थर की राधा प्यारी पत्थर के कृष्ण मुरारी लिरिक्स

गोवर्धन पूजा मतलब गाय की पूजा अतः हमें स्पष्ट संदेश देता है कि गाय की पूजा हिंदू धर्म के लिए कितने महत्वपूर्ण सेवा है। इस दिन हजारों लाखों लोग इस परिक्रमा को करने श्री गोवर्धन मथुरा आते हैं। श्री गिरिराज की परिक्रमा 7 कोस (21 किमी०) की होती है और इस दिन हजारों लाखों लोग इस परिक्रमा को करने आते हैं।

श्री गिरिराज जी की पूरी और संपूर्ण परिक्रमा में दो दिन लगते हैं। इसके तहत एक छोटी परिक्रमा होती है और दूसरी बड़ी परिक्रमा। इसके बारे में मान्यता है कि कभी ये तीस हजार मीटर ऊंचा था लेकिन पुलत्सय ऋषि ने इसे शाप दिया और कहा कि तुम रोज एक मुट्ठी सिकुड़ते रहोगे। तब से यह पर्वत लगातार अपनी ऊंचाई खोता जा रहा है और अब लगभग ३० मीटर ऊंचा रह गया है।

गोवर्धन पर्वत का रहस्य –

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत कहते हैं, इस पर्वत को लेकर एक रहस्य है।

माना जाता है कि एक बार ऋषि पुलस्त्य इस पर्वत की खूबसूरती से बेहद प्रभावित हुए। वे इसे द्रोणांचल पर्वत से उठाकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। तभी गोवर्धन ने कहा कि यदि आप मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हैं तो ले जाइए, लेकिन याद रखिएगा आप मुझे जिस स्थान पर पहली बार रखेंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। ऋषि पुलस्त्य पर्वत को अपने साथ लेकर चल दिए।

रास्ते में उनकी साधना का समय हुआ तो उन्होंने पर्वत को नीचे रख दिया। नीचे रखते ही वह स्थापित हो गया। फिर ऋषि पुलस्त्य उसे हिला भी नहीं सके। इससे में क्रोध में आ गए और उन्होंने पर्वत को हर दिन घटने का श्राप दे दिया। तब से ये पर्वत हर दिन मुट्ठीभर छोटा हो रहा है। यह भी पढ़ेंराधा साध्यम साधनं यस्य राधा मंत्र लिरिक्स

माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत का आकार आज से करीब पांच हजार साल पहले ये 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था जो घटकर अब 30 मीटर रह गया है। पुराणों के अनुसार एक बार इंद्रा देवता ने क्रोध में आकर ब्रज बसियो को इतना तंग कर दिया की पूरे ब्रज मंडल में जल ही जल का भराव कर दिया। यह भी पढ़ेंमैय्या यसोदा ये तेरा कन्हैया हिंदी भजन लिरिक्स

भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।

दूसरी पौराणिक कथा कहती है की द्वापर के समय जब भगवान व्रिष्णु कृष्ण रूप में जन्म लेने से पहले लक्ष्मी जी से कहते है की अब पृथ्वी में अवतार लेने का समय आ गया है। तब माता लक्ष्मी जी भगवान से कहती है की प्रभु जिस जगह गिरिराज यानि गोवर्धन, यमुना और वृन्दावन नहीं होंगे तो हमें वहां मन विचलित सा लगेगा तब भगवान ने पृथ्वी लोक में गोवर्धन पर्वत, यमुना नदी और वृन्दावन को प्रकट किया था।

गोवर्धन परिक्रमा के लिए कब जाया जाये ?

गोवर्धन की परिक्रमा के लिए साल भर श्रद्धालु घूमने आते है हर महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा रात तक परिक्रमा करने वालों की संख्या लाखो में होती है। गुरु पूर्णिमा और दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर यहां आने वाले श्रद्धालु का आंकड़ों की गिनती नहीं की जा सकती।
माना जाता है कि ब्रज का जन्म और ब्रज का वास इंसान के पिछले जन्म के अच्छे कर्मो पर ही मिलता है बहुत सौभग्यशाली है, वो लोग जिनका जन्म ब्रज में हुआ है।

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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी