हमें प्रभु का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है

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हमें प्रभु का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है

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हमें प्रभु का साथ और विश्वास दोनों ही जरूरी है एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे I उन्होंने देखा कि दरिया की तरह से एक कछुआ निकला और पानी के किनारे पर आ गया है I उसी किनारे से एक बड़े जहरीले बिच्छू

ने दरिया के अंदर छलांग लगा दी है I और कछुए की पीठ पर सवार हो गया I

कछुए ने तैरना शुरु कर दिया I उसे देखकर वह बुजुर्ग बड़े परेशान हुए I उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली I इसीलिए दरिया में तैरकर उस कछुए का पीछा किया I वह कछुआ दरिया के दूसरे किनारे पर जाकर रुक गया I

और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शुरू कर दिया I वह बुजुर्ग भी उसके पीछे-पीछे चलते रहे आगे जाकर देखा I कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था I उसके रास्ते में एक भगवान का भक्त ध्यान साधना में आंखें बंद कर भगवान की भक्ति कर रहा था I

उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस भक्त को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुंचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार दूंगा I तुम्हारी शरण मिल गई सांवरे तुम्हारी कसम जिंदगी मिल गई लिरिक्स

लेकिन वह कुछ कदम आगे बढ़े ही थे I कि उन्होंने दूसरी तरफ से एक काला जहरीला सांप तेजी से उस भक्तों को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था I इतने में बिच्छू भी वहां पहुंच गया I

उस बिच्छू ने उसी समय सांप के डंक के ऊपर अपना डंक मार दिया I जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया I जिसके कारण सांप उसी जगह पर अचेत होकर गिर पड़ा I

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इसके बाद वह बिच्छू भी अपने रास्ते पर वापस चला गया I थोड़ी देर बाद जब वह भक्त उठा I तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि भगवान ने उसकी रक्षा के लिए कैसे उस कछुए को दरिया के किनारे लाया I

फिर कैसे भगवान ने उस बिच्छू को कछुए की पीठ पर बैठाकर सांप से तेरी रक्षा के लिए भेजा I

वह भक्त उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया I उसकी आंखों से आंसू निकल आए I और वह आंखें बंद कर प्रभु को याद कर उनका धन्यवाद करने लगा I अर्जुन के अभिमान को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने कैसे ली राजा मोरध्वज की परीक्षा

तभी “प्रभु” ने अपने उस भक्त से कहा ! जब वो बुजुर्ग जो तुम्हें जानता तक नहीं वो तुम्हारी जान बचाने के लिए लाठी उठा सकता है I और फिर तू तो मेरी भक्ति में लगा हुआ था I तो फिर तुझे बचाने के लिए मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है I

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Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी