ताज बीबी कौन थी और श्री कृष्ण भक्त कैसे बनी।

ताज बीबी कौन थी और श्री कृष्ण भक्त कैसे बनी।

You are currently viewing ताज बीबी कौन थी और श्री कृष्ण भक्त कैसे बनी।

ताज बीबी कौन थी और श्री कृष्ण भक्त कैसे बनी। : श्री बांके बिहारी जी की परम भक्त थीं। इनका जन्म 17वीं शताब्दी में हुआ था। ताज बीबी के पिता का नाम पद्न ख़ान था। ताज बीबी का विवाह बादशाह अकबर के साथ हुआ था। अकबर

के मंत्री बीरबल की बेटी शोभावती और जैमल की बेटी लीलावती की श्री विट्ठलनाथ जी के चरणों में अनन्य निष्ठा थी। और वे दोनों श्री बांके बिहारी जी की परम भक्त थीं। यह भी पढ़ें – मंदिर जाने के कुछ जरूरी कारण जिन्हें हम नही जानते हैं।

दोनों श्री बांके बिहारी जी के दर्शनों के लिए आया करती थीं। लीलावती और शोभावती ताज बीबी के पास आती थीं। जिससे ताज बीबी को सत्संग और श्री बांके बिहारी जी चरित्र श्रवण का अवसर मिलता था। इस कारण ताज बीबी के ह्रदय में श्री बांके बिहारी जी के प्रति श्रद्धा प्रकट हो गयी। बीरबल की बेटी शोभावती और जैमल की बेटी लीलावती जब ताज बीबी से मिलने आती थी, तो अक्सर वृन्दावन और श्री विट्ठलनाथ जी की चर्चा किया करती थी। यह भी पढ़ें – माया और योग माया में क्या अंतर है?

शोभावती ने ताज बीबी को ब्रज-धाम और श्री विट्ठलनाथ जी की महिमा बताई की ताज बीबी को ब्रज-धाम और श्री विट्ठलनाथ जी के दर्शनों की लालसा होने लगी। शायद ही आप ताज बीबी के बारे में जानते हों, जो मुस्लिम होने के बावजूद श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गईं थीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण को स्वयं दर्शन देने आना पड़ा था।

वृन्दावन आगमन :

बादशाह अकबर के ह्रदय में श्री विट्ठलनाथ जी के प्रति अगाध श्रद्धा थी और वे श्री विट्ठलनाथ जी के दर्शनों के लिए समय-समय पर गोवर्धन आते थे। एक बार ताज बीबी अकबर से अनुमति लेकर श्री विट्ठलनाथ के दर्शन करने गोवर्धन आयीं। श्री विट्ठलनाथ जी के दर्शन कर ताज बीबी कुछ समय के लिए गोवर्धन में ही रुक गयीं और श्री विट्ठलनाथ जी के सत्संग में भाग लेने लगी। यह भी पढ़ें – भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार क्यों कहा गया है

ताज बीबी ने ब्रज में अनेक लीला स्थलियों एवं मंदिरों के दर्शन किये। ब्रज-धाम के लता कुंजों का दर्शन कर ताज बीबी का मन ब्रज से बाहर जाने को नहीं हुआ लेकिन फिर भी अकबर के आदेश अनुसार कुछ दिन बाद दिल्ली लौट आयी। ताज बीबी ब्रज से लौट तो आयी लेकिन उनका मन ब्रज में ही रमण कर रहा था। वह मुख से श्रीकृष्ण नामका जप करने लगी।

वृन्दावन वास करने के लिए प्रयत्न करना :

ताज बीबी ब्रज से श्रीकृष्ण का एक चित्र अपने साथ लायी थी, जिसको पुष्प एवं फल अर्पण कर उसकी सेवा करने लगी। अब ताज बीबी श्रीकृष्ण के रूप में आसक्त होने लगी और विचार करने लगी की “कैसे ब्रज धाम का वास प्राप्त हो ? यदि बादशाह अकबर से इसकी अनुमति माँगू तो वे जाने नहीं देंगे। ऐसा विचार कर एक समय ताज बीबी श्री विट्ठलनाथ जी के दर्शन करने गोवर्धन आयी। यह भी पढ़ें : गोवेर्धन पर्वत की पारिक्रमा क्यों करते है?

श्री विट्ठलनाथ जी के दर्शन कर ताज बीबी ने श्री विट्ठलनाथ जी से कहा – महाराज, ऐसी कृपा कीजिये की मेरे पति मेरी अभिलाषा को पूर्ण करें।

श्री विट्ठलनाथ जी ने कहा – अपने पति के प्रत्येक आदेश का पालन करो, तुम्हारी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होगी। इसके बाद ताज बीबी दिल्ली दरबार में लौट आयी और अकबर के प्रत्येक आदेश कर पालन करने लगी। एक दिन अकबर ने विचार किया की ताज बीबी मेरी हर आज्ञा का पालन करती है, मुझे भी उसकी इच्छा पूर्ण करनी चाहिए।

ऐसा विचार कर अकबर ने ताज बीबी से पूछा – तुम्हारी क्या इच्छा है ताज बीबी ने विचार किया की यदि मैं ब्रज का वास मांगू तो अकबर मना कर देंगे, इसलिए ताज बीबी ने कहा – महाराज ! मुझे आगरा के महल में निवास करना है, मुझे आगरा भेज दीजिये। अकबर इस बात के लिए मान गया और ताज बीबी को यमुना के रास्ते नाव से आगरा भेज दिया।

आगरा ब्रज की सीमा पर स्थित है। इसलिए ताज बीबी अब अक्सर गोवर्धन, गोकुल, वृन्दावन, बरसाना आदि स्थानों के दर्शन करने लगी थी।

ताज बीबी का वृंदावन के प्रति अटूट प्रेम :

अब ताज बीबी श्री विट्ठलनाथ जी का सत्संग भी सुनने के लिए आया करती थी। वह सत्संग में जिस लीला का श्रवण करती उसी के चिंतन में डूबी रहती। अब ताज बीबी का ह्रदय श्रीकृष्ण-विरह में जलने लगा और वह श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए रोती रहती। ताज बीबी की वेश-भूषा भी बदल गयी थी।

अकबर बादशाह एक दिन आगरा आया। आगरा में अकबर की दूसरी पत्नियों ने अकबर से ताज बीबी की शिकायत की कि – ताज बीबी बिलकुल बदल चुकी है, उसकी वेश-भूषा भी बदल गयी है। कलमा-कुरान छोड़कर श्रीकृष्ण का चित्र ह्रदय से लगाए रोती रहती है। सदैव कृष्ण-कृष्ण जपती रहती है। उसका खान-पान भी बदल गया है। आप ताज बीबी का ध्यान दीजिये वरना कल को बदनामी होगी। यह भी पढ़ें – भक्त का प्रेम-भाव देखकर राधा रानी से रहा नहीं गया

बादशाह अकबर ने जब रानियों से ताज बीबी का विवरण सुना तो वे बहुत प्रभावित हुए। अकबर ने ताज बीबी को कुछ नहीं कहा और किसी चीज़ के लिए रोका नहीं। ताज बीबी की दासी ने ताज बीबी को बताया की – आपके विरोध में समस्त रानियां बादशाह से आपकी शिकायत कर रही हैं।

ताज बीबी ने किसी से कुछ नहीं कहा और अपने प्रिय श्री श्री बांके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगी –


सुनो दिल जानी मेरे दिल की कहानी तुम,
हुस्न की बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं।

देव पूजा ठानी हौं निवाज हूँ भुलानी तजे,
कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं॥

श्यामला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये,
तेरे नेह दाग में निदाग ह्वै दहूँगी मैं।

नन्द के कुमार कुरवान ताणी सूरत पै,
हौं तो मुगलानी हिन्दुआनी ह्वै रहूँगी मैं॥


वृंदावन में वास और श्री बांके बिहारी जी के साक्षात् दर्शन :

ताज बीबी अब हमेशा बांके बिहारी जी से ब्रज-वास के लिए प्रार्थना करने लगी। महल में न सत्संग और न कीर्तन। तो इस कारण ताज बीबी उदास रहने लगी। उसे ब्रज के मंदिर और संतों की याद आने लगी। ताज बीबी का खाना भी कम हो गया जिससे उनका शरीर कमजोर होने लगा। एक दासी ने अकबर को ताज बीबी की इस हालत के बारे में बताया।

अकबर ताज बीबी के पास आया और उससे पूछने लगा कि – तुम बहुत दिनों से उदास रह रही हो, किसलिए उदास हो? ताज बीबी ने कहा – मैं वृंदावन में रहना चाहती हूं, जहां मैं रोजाना सत्संग करूंगी और संतों के दर्शन करूंगी। अकबर ने कहा – तुम्हारे ह्रदय में श्री बांके बिहारी जी भक्ति है, जो बड़े भाग्य से किसी-किसी को ही प्राप्त होती है, तुम चिंता मत करो, मैं वृन्दावन में तुम्हारे रहने की व्यवस्था करा दूंगा, तुम जाओ और वृन्दावन वास करो। यह भी पढ़ें – भगवान जगन्नाथ हर वर्ष बीमार क्यों होते हैं

ताज बीबी वृन्दावन आ गयी और एक कुटिया में रहने लगी। ताज बीबी को श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करने की इच्छा थी।लेकिन अपने को म्लेच्छ मानकर वह मंदिर के भीतर नहीं जाती थी। यद्यपि ताज बीबी को मंदिर में आने पर रोक नहीं थी। ताज बीबी नित्य श्री बांके बिहारी जी मंदिर के द्वार पर चौखट पर प्रणाम कर लौट जाती थी। लेकिन ताज बीबी के ह्रदय में श्री बांके बिहारी जी के दर्शन की इच्छा थी।

taaj bibi ki samadhi

वह यह विचार करती की मैं इस म्लेच्छ शरीर से मंदिर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकती, श्री बांके बिहारी जी के दर्शन नहीं कर सकती। लेकिन ठाकुर जी तो अंतर्यामी हैं, मेरे ह्रदय की बात जानते हैं, जब वे किसी पुजारी के ह्रदय में प्रेरणा द्वारा मुझे मंदिर के भीतर बुलाएँगे तो मैं उनके दर्शन का सुख प्राप्त कर पाऊँगी।

ऐसा सोच-विचार कर वह प्रतिदिन मंदिर के द्वार पर आती, चौखट पर प्रणाम करती और अपने कुटिया में लौट आती। ऐसा करते-करते बहुत दिन बीत गए, लेकिन किसी भी पुजारी ने उसे मंदिर के भीतर नहीं बुलाया। एक दिन ताज बीबी श्री बांके बिहारी जी मंदिर आयी और चौखट पर प्रणाम कर कुछ प्रणय कोप से श्री बांके बिहारी जी से कहने लगी –

आप तो दया के सागर हैं, फिर मुझसे ऐसी निष्ठुरता क्यों ? क्या मैं आपके दर्शन भी नहीं कर सकती ! तो मैं अब आपके मंदिर कभी नहीं आउंगी और जब तक आप स्वयं आकर दर्शन नहीं देंगे तब तक अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करुँगी। ठाकुर जी से ऐसा कह कर ताज बीबी अपने कुटिया पर लौट आयी। 3 दिन बीत गए ताज बीबी को अन्न जल ग्रहण किये। शरीर कमज़ोर हो गया लेकिन वह श्री बांके बिहारी जी का स्मरण कर रोती रही। यह भी पढ़ें – श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी रविंद्र जैन भजन लिरिक्स !

मध्य रात्रि में ताज बीबी को असह्य पीड़ा होने लगी। उसी समय उसने एक गंभीर वाणी सुनी ताज ! देखो मैं तुम्हारे लिए भोजन और जल लाया हूँ। ताज बीबी ने देखा तो नीला प्रकाश फ़ैल रहा है और उसमे नीलमणि श्री बांके बिहारी जी भोजन और जल लिए खड़े हैं। श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करते ही ताज बीबी को मूर्छा आ गयी।

श्री बांके बिहारी जी भोजन और जल को वही रख कर अंतर्ध्यान हो गए। जब ताज बीबी की मूर्छा गयी तो वह सोचने लगी की यह कोई स्वप्न था या सत्य। पुरे कुटिया में एक दिव्य सुगंध व्याप्त थी। जब ताज बीबी ने भूमि पर देखा तो वही भोजन की थाल और जल की झारी रखी थी जो ठाकुर जी के हाथों में थी। ताज बीबी समझ गयी की ठाकुर जी सत्य में आये थे। यह भी पढ़ें – नवधा भक्ति ! कैसे प्रभु श्रीराम द्वारा माता शबरी को प्राप्त हुई

ताज बीबी ने सोचा की मेरे प्रण के कारण ही ठाकुर जी को रात्रि में यहाँ आने का कष्ट करना पड़ा। ताज बीबी को बहुत पश्चाताप हुआ। अपने को धैर्य देते हुए ताज बीबी ने ठाकुर जी का प्रसाद ग्रहण किया। प्रसाद का ऐसा स्वाद ताज बीबी ने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया था। उसका शरीर रोमांचित होने लगा और ह्रदय एक नवीन उत्साह से भर गया।

ताज बीबी को लीलाओं की स्फूर्ति होने लगी। उन लीलाओं को ताज बीबी पद्य में लिपिबद्ध कर लेती। श्रीकृष्ण दर्शन का पद इस प्रकार है –


छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला,
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है॥

माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है॥

दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है॥

नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है॥


अगले दिन सुबह श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में पुजारी-गण ठाकुर जी के भोग की थाल और जल की झारी खोजने लगे लेकिन वह किसी को भी नहीं मिली। मंदिर के पुजारी गण आश्चर्यचकित थे की मंदिर तो बंद था, तो भोग की थाल और जल की झारी कैसे गायब हो सकती है। यहाँ कुटिया में ताज बीबी ने भोग की थाल और जल की झारी को मांज-साफ कर दासी के हाथों से मंदिर भिजवा दिया।

दासी भोग की थाल और जल की झारी लेकर मंदिर पहुंची तो मंदिर के पुजारी स्तब्ध हो गए। उन्होंने दासी से पूछा की – तुमको भोग की थाल और जल की झारी कैसे मिली। दासी ने कहा – महारानी ताज बीबी ने यह भिजवाया है। यह भी पढ़ें – ऋषि मुनियों द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र

पुजारी गण ताज बीबी के पास आये और ताज बीबी से पूछने लगे – भोग की थाल और जल की झारी आपके पास कैसे आयी।
ताज बीबी ने सब वृतांत सुना दिया। पुजारी गण ताज बीबी के भाग्य की सराहना करने लगे। यह बात धीरे-धीरे पूरे ब्रज-मंडल में फ़ैल गयी।

दूर-दूर से लोग ताज बीबी के दर्शनों के लिए आने लगे जिससे ताज बीबी को भजन में विक्षेप होने लगा। कुछ दिन बाद ताज बीबी यमुना पार कर गोकुल महावन चली गयीं और अपने जीवन का शेष समय वही व्यतीत किया।

ताज बीबी की रचना :

ताज बीबी ने अनेक पदों की रचना की है ! जिसमें विनय, रूप माधुरी, ऐश्वर्य, प्रेम, आदि के पद सम्मिलित हैं। जैसे उदहारण के लिए –


अल्ला बिसमिल्ला रहिमान और रहीम छोड़,
पीर और शहीदों की चर्चा न चलाऊँगी।

सूथना उतार पहिन घांघरा घुमावदार,
फरिया को फार शीश चूनरी चढ़ाऊँगी।

कहत शहजादी ठाकुर कवी सों पैज कर,
वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाऊँगी।

बांदी बनूँगी राधा-महारानी जू की,
तुर्किनी बहाय नाम गोपिका कहाऊँगी।


लीला संवरण :

ताज बीबी ने गोकुल महावन में ही देह त्याग कर गोपी स्वरुप से श्री बांके बिहारी जी की लीलाओं में सम्मिलित हो गयी। यहीं पर ताज बीबी की समाधी ! इनकी समाधि आज भी ब्रजभूमि की रमन रेती से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। इनकी समाधि आज वीरान वन में गुमनाम है।

Bhakti Gyaan

आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी