माया और योग माया में क्या अंतर है? :
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योगमाया शक्ति क्या है? :
योगमाया भगवान की अंतरंग और अपनी शक्ति है। भगवान के जितने भी कार्य होते हैं वह योगमाया से होते हैं। जैसे भगवान जो भी लीला करते हैं वह योग माया के द्वारा करते हैं। भगवान जो कुछ भी सोचते हैं वह योग माया तुरंत उस चीज को कर देती है। जैसे कि आपने सुना होगा कि कृष्ण जब जन्म लिए तो द्वारपाल सो गए, द्वार अपने आप खुल गए, यमुना ने मार्ग दे दिया, यह सब योग माया से होता है।
योगमाया की पहचान :
जब भी भगवान का कोई कार्य असंभव हो और वह संभव हो रहा है। तो आप समझ लीजिये की यह योग माया के द्वारा हुआ है। जैसे वेदों ने कहा कि भगवान स्वतंत्र हैं, वह किसी के अधीन नहीं है। और वह यशोदा मैया के डंडे से डर जाते हैं और उनमें रस्सी से बंध जाते हैं। यह भी पढ़ें : ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में क्या अंतर होता है ?
तो यह सर्वज्ञ भगवान सब कुछ जानने वाला भगवान, सर्वशक्तिमान भगवान, सबको मुक्त करने वाला और मैया के यशोदा के रस्सी से बंध जाते है, और माँ से मुक्त करने की विनती करते है, और वो भी अभिनय में नहीं। वास्तव में, जैसे हम लोग माँ से डरते है, ऐसे ही। यह योग माया के कारण होता है। यह भी पढ़ें : कलयुग में सिद्ध हो देव तुम्ही हनुमान हिंदी लिरिक्स
तो भगवान के जो लीलाएं हैं वह योगमाया से होती हैं। या ऐसा कह दो कि भगवान जो कुछ भी करते हैं, वह सब योग माया के कार्य होते हैं। और केवल भगवान नहीं जितने संत महात्मा हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं, जिन महात्माओं ने भगवान की प्राप्ति कर ली है। वह भी योग माया की शक्ति से कार्य करते हैं। यह भी पढ़ें : किशोरी श्री लाड़िली जु (श्री राधारानी जी) की वंशावली
योगमाया कैसे कार्य करती है? :
योगमाया की शक्ति कुछ ऐसी है कि कार्य माया के द्वारा होता हैं, लेकिन उनको माया नहीं लगती। जैसे क्रोध करना यह माया का विकार है दोष है। लेकिन महापुरुष और भगवान भी क्रोध करते हैं, पर वह माया का क्रोध नहीं होता वह योगमाया का क्रोध होता है। देखने में लगता है कि भगवान क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है महापुरुष को क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है। यह भी पढ़ें : एक भक्त का बाल श्री कृष्ण के प्रति विशुद्ध प्रेम !
लेकिन वो योग माया से क्रोध करते है और हम लोग कहते हैं कि यह संत भी माया के आधीन है। लेकिन वास्तविकता यह है कि वह योग माया से कार्य कर रहे हैं अर्थात् चेहरे पर क्रोध है लेकिन अंदर कुछ क्रोध नहीं है यह योग माया का विलक्षण बात है।
- गोपियों को शंका – श्री कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे?
गोपियों को शंका होती है कि श्री कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे हैं और दुर्वासा जी ने अपने जीवन में दूब के अलावा कोई स्वाद नहीं लिया है? तो इस प्रश्न का उत्तर श्री कृष्ण देते हैं कि “यह कार्य योग माया से होते हैं, योग माया से माया के कार्य किए जाते हैं। लेकिन वह भगवान और महापुरुष माया से परे रहते हैं। यह भी पढ़ें : आज भी समय जटायु की बात दुहराता है।
“दुर्वासा जी अनेक प्रकार के व्यंजन खाये हैं, यह माया का कार्य है, सबको दिख रहा है। लेकिन योग माया के कारण उनको यह माया का सामान का स्वाद उन्हें अनुभव नहीं होता। यही कार्य अर्जुन ने किया था। वह सब को मार रहा है दुनिया देख रही है कि हाँ ! अर्जुन ने सबको मारा है। लेकिन वास्तव में अर्जुन ने किसी को नहीं मारा है। यह है योग माया के विलक्षणता।”
माया क्या है? –
माया भगवान की बहिरंग शक्ति है। माया भी भगवान की ही शक्ति है। लेकिन यह माया जो भगवान से विमुख जीव है या जो जीव भगवान को अपना नहीं मानते या अपना सब कुछ नहीं मानते या जिन जीवो को भगवत्प्राप्ति (भगवान की प्राप्ति) नहीं हुई है। यह भी पढ़ें : गोवेर्धन पर्वत की पारिक्रमा क्यों करते है?
उन पर यह माया हावी रहती है। जिन्होंने भगवान की प्राप्ति कर ली उनसे भगवान माया को हटा देते हैं और उन्हें योग माया की शक्ति दे देते हैं। जिससे वह महात्मा (संत, ऋषि मुनि) माया के कार्य करते हैं लेकिन माया से परे रहते हैं।
योग माया का स्वरूप :
दुर्गा, सीता, काली, राधा, लक्ष्मी, मंगला, पार्वती का मूर्त रूप है योग माया। और इसी योगमाया से कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं। शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही अभिनय स्वरूप प्रगट रूप में हैं। अतएव इन नारियों को नारी मत समझिये।
ये चाहे तो स्त्री के रूप में रहे या पुरुष के रूप में। ये स्वेच्छा से किसी भी रूप को धारण कर सकती है। तो योगमाया को स्त्री का रूप मत समझिये। योगमाया भगवान की शक्ति है, ये किसी भी स्वरूप में रह सकती है। योगमाया बिना किसी स्वरूप के भी भगवान और महापुरुष के साथ रहती है। जैसे नारद जी, तुलसीदास, इनके पास कोई स्त्री नहीं है, लेकिन योगमाया की शक्ति है।
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