कार्तिक मास माहात्म्य-दूसरा अध्याय
कार्तिक मास माहात्म्य-दूसरा अध्याय पुनरावर्ती : प्रथम अध्याय में आपने पढ़ा कि भगवान श्रीकृष्ण से सत्यभामाजी ने पूछा कि मेरे ऐसे कौन से पुण्यकर्म थे । कि आप मुझे पतिस्वरूप प्राप्त हुए और ऐसा क्या करना चाहिए, कि हर जन्म में, मैं आपको ही पतिरूप में प्राप्त करूं । भगवान सत्यभामाजी को उनके पूर्व की कथा सुना रहे हैं ।
कार्तिक माहात्म्य दूसरा अध्याय –
भगवान श्रीकृष्ण बोले – हे प्रिये ! जब गुणवती ने सुना कि राक्षस ने उसके पिता और पति को राक्षसने खा लिया है । तो वह दुखी होकर जोर-जोर से विलाप करने लगी । वह अपने दुख में जोर-जोर से चिल्लाती कि उसके भोजन, वस्त्र और सुरक्षा का प्रबंध कौन करेगा? पिता और पति से विहीन स्त्री कैसे अपना जीवन बिताएगी?
इसी शोक में विलाप करती हुई और अचेत होकर भूमि पर गिर गई । जब उसकी चेतना लौटी तो किसी तरह घर का सारा सामान बेचकर उसने यथासंभव पिता और पति की पारलौकिक क्रिया कर्म किया। उसके बाद उसी नगर में रहते हुए इंद्रियों को वश में रखकर भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर होकर शांति से रहने लगी।
जीवन के अंतिम समय तक एकादशी और कार्तिक मास के व्रत-स्नानादि नियमपूर्वक करती रही। श्रीकृष्णजी इतना बताने के बाद सत्यभामा से बोले – हे प्रिये ! ये दोनों व्रत मुझे अत्यधिक प्रिय हैं। जिसके करने से भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुत्र और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
कार्तिक की तुला राशि पर सूर्य निकलने पर अघर महापापी भी प्रातःस्नान करते हैं, वे भी मुक्ति को प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य स्नान, जागरण, दीपदान और तुलसी आराधना करते हैं, वे विष्णु रूप हो जाते हैं। भगवान विष्णु के मंदिर में जो लोग साफ-सफाई, भजन-कीर्तन एवं पूजन करते हैं, वे जीवन मुक्त होते हैं। Please Read Also–अर्जुन के अभिमान को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने कैसे ली राजा मोरध्वज की परीक्षा?
इस प्रकार गुणवती हर साल कार्तिक व्रत और भगवान विष्णु का नित्य पूजन करती रही। वृद्धा होने के बाद एक बार वह ज्वर से पीड़ित और दुर्बल थी। फिर भी गंगास्नान को गई। ज्योहि वह पानी में उतरी, ठंड के कारण कांपने लगी।
उसी समय गुणवती ने आकाश से आता हुआ एक विमान देखा। शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि आयुधों से युक्त श्रीविष्णु का रूप धारण किए हुए विष्णु के पार्षद आए और गुणवती को अपने साथ विमान में बैकुंठ लोक को लेकर चले गए। कार्तिक व्रत के प्रभाव के कारण गुणवती मेरे पास आ गई।
जब ब्रह्मादि देवताओं की प्रार्थना पर मैंने पृथ्वी पर अवतार लिया तब वे गण भी मेरे साथ आए। हे भामिनी ! ये सब जो यादव हैं, मेरे ही गण हैं, जो मेरे साथ आए हैं। तुम वही गुणवती हो जो कार्तिक स्नान के प्रभाव से मुझे अति प्रिय हो। Please Read Also–अशोक वाटिका में जब रावण माता सीता जी के पास आता था तो वह तिनके को ओर क्यों देखती थीं i
तुम्हारे पिता देवशर्मा इस जन्म में तुम्हारे पिता सत्राजित हुए, और तुम्हारे पति चंद्रशर्मा इस जन्म में अक्रूरजी बने। तुमने तुलसी का बाग लगाया था। उसी का प्रभाव है कि यह कल्पवृक्ष तुम्हारे आंगन में है। कार्तिक मास में जो तुमने दीपदान किए हैं ।
उसी फल से तुम्हारी देह सुंदर हुई और घर में लक्ष्मी का वास है। तुमने समस्त व्रत के फल पति स्वरूप भगवान को अर्पण कर दिए थे। इसलिए मेरी पत्नी बनी हो। तुमने जन्म से लेकर मृत्यु तक कार्तिक पूजा को जो फल प्राप्त किया, उसके कारण मेरा सान्निध्य मिला।
इस व्रत को धारण करने वाले मुझे तुम्हारे जितने ही प्रिय हो जाते हैं। सत्यभामा पूर्वजन्म की कथा सुनकर बड़ी प्रसन्न हुईं।
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आपका कर्तव्य ही धर्म है, प्रेम ही ईश्वर है, सेवा ही पूजा है, और सत्य ही भक्ति है। : ब्रज महाराज दिलीप तिवारी जी